वड़वानल – 24
लेखक: राजगुरू द. आगरकर अनुवाद: आ. चारुमति रामदास 1 तारीख को शाम चार बजे की चाय हुई । 2 तारीख के डेली ऑर्डर की घोषणा की गई । सर एचिनलेक के आगमन के कारण पूरा रुटीन बदल गया था । परेड के लिए फॉलिन सुबह पौने आठ बजे ही होने वाली थी । सैनिक …
Read Moreवड़वानल – 23
लेखक: राजगुरू द.आगरकर अनुवाद: आ. चारुमति रामदास उसी दिन रात को खान ने परिस्थिति पर विचार–विमर्श करने के लिए सभी को इकट्ठा किया । ‘‘किंग के आने से परिस्थिति बदल गई है । हमारी गतिविधियों पर रोक लगने वाली है । पहरेदारों की संख्या बढ़ा दी गई है । पूरी बेस में तेज प्रकाश…
Read Moreवड़वानल – 22
लेखक: राजगुरू द. आगरकर अनुवाद: आ. चारुमति रामदास मुर्गे ने पहली बाँग दी फिर भी सैनिक जेट्टी पर सज़ा भुगत ही रहे थे । आख़िर तंग आकर पीटर्सन ने पॉवेल से रुकने को कहा । ‘‘तुम लोगों की सहनशक्ति की मैं दाद देता हूँ; मगर याद रखो, मुकाबला मुझसे है । अपराधी को पकड़े …
Read Moreवड़वानल – 21
लेखक: राजगुरू द. आगरकर अनुवाद: आ. चारुमति रामदास रात का एक बज गया । हिन्दुस्तानी सैनिकों की बैरक में खामोशी थी, फिर भी मदन, गुरु, दत्त, सलीम, दास और खान जाग ही रहे थे । बॉलरूम से वाद्य–वृन्द की आवाजें साफ सुनाई दे रही थीं । मदन और गुरु ने बॉलरूम तथा ऑफिसर्स मेस…
Read Moreवड़वानल – 20
लेखक: राजगुरू द. आगरकर अनुवाद: आ. चारुमति रामदास 20 गुरु, मदन, खान और दत्त बोस की गतिविधियों पर नजर रखे हुए थे । वह कब बाहर जाता है, किससे मिलता है, क्या कहता है । यह सब मन ही मन नोट कर रहे थे । ‘‘बोस आज दोपहर को पाँच बजे बाहर गया है…
Read Moreवड़वानल – 19
लेखक: राजगुरू द. आगरकर अनुवाद: आ. चारुमति रामदास 19 ‘‘किसने लिखे होंगे ये नारे ?’’ फुसफुसाकर रवीन्द्रन राघवन से पूछ रहा था । ‘‘किसने लिखे यह तो पता नहीं, मगर ये काम रात को ही निपटा लिया गया होगा ।’’ ‘‘कुछ भी कहो, मगर है वह हिम्मत वाला! मैं नहीं समझता कि गोरे कितना…
Read Moreवड़वानल – 18
लेखक: राजगुरू द. आगरकर अनुवाद: आ. चारुमति रामदास ‘तलवार’ पर 1 दिसम्बर की ज़ोरदार तैयारियाँ चल रही थीं । बेस की सभी इमारतों को पेंट किया गया था । बेस के रास्ते, परेड ग्राउण्ड रोज पानी से धोए जाते थे । रास्ते के किनारे पर मार्गदर्शक चिह्नों वाले बोर्ड लग गए थे । परेड …
Read Moreवड़वानल – 17
लेखक: राजगुरू द. आगरकर अनुवाद: आ. चारुमति रामदास आस्तीन के साँप ही विश्वासघात करेंगे । यह ध्यान में रखकर शेरसिंह अपना बसेरा गिरगाव से दादर ले गए । एक भूमिगत कार्यकर्ता के माध्यम से इस नयी जगह का पता खान और मदन तक पहुँचाया गया था । पहरेदार बदल दिये गए थे । शेरसिंह …
Read Moreवड़वानल – 16
लेखक: राजगुरु द. आगरकर अनुवाद: आ. चारुमति रामदास आर. के. सुबह 6–30 की फॉलिन पर गया नहीं । दोपहर 12 से 4 उसकी कम्युनिकेशन सेंटर में ड्यूटी थी । चाहे फॉलिन पर आर. के. की गैरहाजिरी को किसी ने अनदेखा कर दिया हो, मगर कम्युनिकेशन सेन्टर में उसकी गैरहाजिरी को चीफ टेल ने…
Read Moreवड़वानल – 15
लेखक: राजगुरू द. आगरकर अनुवाद: आ. चारुमति रामदास 15 ‘‘जय हिन्द!’’ तीनों ने उनका अभिवादन किया । अभिवादन स्वीकार करते हुए उन्होंने तीनों को बैठने का इशारा किया और लिखना रोककर वे कहने लगे, ‘‘तुम्हारे मुम्बई के संगठन कार्य के बारे में मुझे पता चला । सैनिकों को इस बात का ज्ञान कराना कि …
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