लेखक: राजगुरू द. आगरकर
अनुवाद: आ. चारुमति रामदास
दोपहर ग्यारह बजे रॉटरे ने गॉडफ्रे का एक सन्देश रेडियो पर प्रसारित किया:
‘‘कल मैंने तुमसे कहा था कि परिस्थिति सामान्य करने के लिए सरकार के पास प्रचुर सैनिक बल उपलब्ध है। His Excellency Commander in Chief लार्ड एचिनलेक ने दक्षिण विभाग के ऑफ़िसर कमांडिंग ले. जनरल लॉकहर्ट के हाथों में सारे सूत्र सौंप दिये हैं। आज जो गड़बड़ी की परिस्थिति का निर्माण हो गया है उसे सामान्य करने के लिए उनकी नियुक्ति की गई है। आज जो परिस्थिति है उसे समाप्त करने के लिए सरकार के पास पर्याप्त सैन्यबल है यह सिद्ध करने के लिए जनरल लॉकहर्ट ने रॉयल एअर फोर्स के हवाई जहाज़ों को बन्दर विभाग में उड़ानें भरने का हुक्म दिया है। ये हवाई जहाज़ जहाजों पर चक्कर नहीं लगाएँगे और न ही कोई आक्रमण करेंगे। मगर यदि जहाज़ों अथवा नाविक तलों ने इन हवाई जहाज़ों के ख़िलाफ कार्रवाई करने की कोशिश की तो फिर वे आगा–पीछा नहीं देखेंगे।
‘‘तुमने यदि मेरी चेतावनी के फलस्वरूप बिना शर्त आत्मसमर्पण करने का निर्णय ले लिया हो तो अपने–अपने जहाज़ों पर काला अथवा नीला झण्डा फहराओ। जहाज़ों के सारे सैनिक मुम्बई की ओर मुँह करके खड़े होंगे और अगली सूचना की राह देखेंगे।’’
कांग्रेस और लीग के नेता विद्रोही सैनिकों से दूर हट गए हैं इसका यकीन हो जाने पर गॉडफ्रे ने नौसैनिकों के चारों ओर पाश कसना आरम्भ कर दिया। आज रेडियो से प्रसारित सन्देश इसी व्यूह रचना का एक भाग था। गॉडफ्रे ने अब सिर्फ़ धमकी ही नहीं दी थी, बल्कि अन्तिम चेतावनी भी दे दी थी और ज़रूरत पड़ने पर उसने नौदल को नेस्तनाबूद करने की तैयारी कर ली थी।
गॉडफ्रे की अन्तिम चेतावनी को नागरिकों ने सुना और वे बेकाबू हो गए। दोपहर के दो बजे से दमन की कार्रवाई तेज़ हो गई थी। अश्रुगैस, लाठीचार्ज, गोलीबारी चल ही रही थी। नदी में जिस तरह बाढ़ आती है, उसी तरह लोगों का गुस्सा बढ़ता जा रहा था। लोगों ने जगह–जगह बैरिकेड्स लगा दिए, छोटे–बड़े पत्थर इकट्ठे कर लिये और रास्तों पर नारे लगाने लगे।
जॉन स्मिथ नामक कस्टम्स इंस्पेक्टर ने उस रात को अपनी डायरी में लिखा: ‘‘मुम्बई के परेल में मज़दूर बस्ती के सुपारीबाग रास्ते पर मैं जा रहा था। दोपहर के चार बजे थे। एल्फिन्स्टन रोड के नुक्कड़ पर काफ़ी लोग जमा थे। उसे भीड़ नहीं कह सकते, मगर वह लोगों का झुण्ड था। उस झुण्ड में किसी के भी पास हथियार तो क्या लाठी या पत्थर तक नहीं थे। कम्युनिस्ट पार्टी के आदेशानुसार वे नि:शस्त्र थे। इतने में बगैर किसी पूर्व सूचना के अचानक सशस्त्र गोरे सैनिकों से भरी एक लॉरी एल्फिन्स्टन रोड़ से आई। इन सैनिकों के हाथों में रायफ़ल्स और ब्रेनगन्स थीं। सैनिकों से भरी उस लॉरी को देखते ही रास्ते के सभी लोग, मैं भी उनमें था, घबराकर अपने–अपने घर की ओर भागने लगे। ब्रिटिश सैनिकों ने एक पल की भी देरी किए बिना लोगों की दिशा में फ़ायरिंग शुरू कर दी। इस फ़ायरिंग में बीस लोग घायल हो गए और चार लोगों की मृत्यु हो गई। इसके पीछे क्या कारण था?
‘‘मज़दूर संगठनों ने नौसैनिकों को समर्थन देने के लिए हड़ताल की अपील की थी। हड़ताल शत–प्रतिशत कामयाब हो गई थी। सभी स्तरों के मज़दूरों ने हड़ताल में हिस्सा लिया था।
‘‘किसी वरिष्ठ अधिकारी को इस पर गुस्सा आ गया और उसने शायद इन्हें बढ़िया सबक सिखाने की ठान ली होगी। गश्ती ब्रिटिश सैनिक युद्ध जैसी तैयारी से आए थे। ट्रकों और लॉरियों में घूम रहे सैनिक भीड़भाड़ वाले ठिकानों पर अन्धाधुन्ध गोलियाँ बरसा रहे थे। इससे पहले कि कोई उन पर फेंकने के लिए पत्थर उठाता, वे शीघ्रता से निकल जाते। घायलों को ले जाने के लिए एम्बुलेन्स भी उपलब्ध नहीं थी । लोग जैसे भी बनें, घायलों को निकट के अस्पताल में ले जा रहे थे।
‘‘मैंने डिलाइल रास्ते पर देखा, गोरे सैनिक चाल में घुस रहे थे। अपने अपने घरों में शान्त बैठे हुए, अपने दैनंदिन कामों में व्यस्त लोगों पर गोलियाँ चला रहे थे। इस कत्लेआम में चार लोगों की मृत्यु हो गई और सोलह ज़ख़्मी हो गए।
‘‘परेल के के.ई.एम. हॉस्पिटल में इस दंगल में ज़ख़्मी पचास लोगों की मृत्य हो गई। इस भाग में जो छह सौ लोग ज़ख़्मी हुए थे उसमें से दो सौ व्यक्ति यहाँ दाखिल हुए थे।
‘‘कई अख़बारों में गैर ज़िम्मेदाराना विद्रोह के बारे में लिखा, मगर यह नहीं बताया कि विद्रोह में शामिल ‘कैसल बैरेक्स’ के नौसैनिकों को ब्रिटिश पलटनों ने घेर लिया था, नौसैनिकों का खाना पीना बन्द करवा दिया था, नौसैनिकों ने जब पानी लाने के लिए बाहर निकलने की कोशिश की तो वरिष्ठ अधिकारियों ने फ़ायरिंग का हुक्म दे दिया था।
‘‘वे भीड़ के हिंसक बर्ताव और गुण्डागर्दी के बारे में लिखेंगे, मगर यह न बताएँगे कि अनुशासन से जाने वाले जुलूस के लोगों को तेज़ी से आ रहे ट्रक ने टक्कर मारी थी, तभी भीड़ ने पत्थरबाजी की थी।
‘‘जहाजों पर एक ही रस्सी पर तथा जुलूस में सबसे आगे फ़हराते कांग्रेस के तिरंगे, लीग के हरे चाँद–तारे वाले और कम्युनिस्टों के लाल झण्डों का एक ही सन्देश था – एक हो जाओ।
‘‘हम एक घर के दरवाज़े के पास छुपकर ख़ुद को बचाने की कोशिश कर रहे थे। गोलियों की बौछार जारी थी। एक हिन्दुस्तानी युवक ने मुझसे कहा, ‘‘देखा, ब्रिटिशों का समाजवाद किस तरह अमल में लाया जा रहा है?’’ मुझे अपनी लेबर पार्टी की सरकार के सम्मान की चिन्ता थी। इण्डोनेशिया छोड़ने के बाद सिर्फ़ चौबीस घण्टों में यह सरकार अपना समर्थन खो बैठी थी।
‘‘पुलिस इस काण्ड में पीछे ही थी। मुझे कोई भी हिन्दुस्तानी सैनिक रास्ते पर दिखा ही नहीं। मुझे बाद में बताया गया, ‘हिन्दुस्तानी सैनिकों में व्याप्त असन्तोष के बढ़ने से ब्रिटिश सरकार ने यही उचित समझा कि हिन्दुस्तानी सैनिकों को बाहर ही न निकलने दिया जाए।’
‘‘विद्रोह और लोगों के समर्थन को दबाने आए ब्रिटिश सैनिक नियमित सैनिक अथवा सुरक्षा सैनिक नहीं थे, बल्कि सख़्ती से सेना में भर्ती किए गए सैनिक या स्वयंसेवक थे। सैनिकों के यूनिफॉर्म में ये इंग्लैंड के सामान्य मज़दूर थे। उन्हें मामूली–सा सैनिक प्रशिक्षण दिया गया था।
‘‘सशस्त्र ब्रिटिश सैनिक रास्तों पर पागल कुत्तों की तरह घूम रहे थे। किसी भी नागरिक को रास्ते पर देखते ही बन्दूकें गरजने लगतीं । दो–चार चीखें सुनाई देतीं और फिर श्मशान जैसी ख़ामोशी छा जाती।‘’
गॉडफ्रे की धमकी सुनते ही सैनिक तिलमिला उठे। कुछ लोग गुस्से से लाल हो गए। ‘‘ये गॉडफ्रे, साला, अपने आप को समझता क्या है?’’ अनेकों ने यह सवाल पूछा। गॉडफ्रे की धमकी मानो उनकी मर्दानगी को ललकार रही थी। अनेक लोग इस ललकार का करारा जवाब देना चाहते थे।
‘‘हम इस तरह हिजड़ों की तरह कब तक चुप बैठे रहेंगे?’’
‘‘सेंट्रल स्ट्राइक कमेटी तो हमने ही चुनी है। उसकी आज्ञाओं का पालन अब तक हम करते आए हैं। यदि गॉडफ्रे हथियार उठाने वाला है, हमें नेस्तनाबूद करने वाला है तो हम चुप क्यों रहें?’’
गॉडफ्रे के हवाई जहाज़ ढाई बजे आने वाले हैं ना, तो इससे पहले ही हम जहाज़ों की तोपें क्यों न दागें?
हर नाविक तल के और जहाज़ के सैनिक बेचैनी से सवाल पूछ रहे थे। सेंट्रल कमेटी के पास आ रहे सन्देशों की संख्या बढ़ती जा रही थी।
‘‘बिना शर्त आत्मसमर्पण हमें मंज़ूर नहीं। हम बलिदान के लिए तैयार हैं।’’ ‘कैसल बैरेक्स’ ने सूचित किया था।
‘‘हमला कब करना है? तोपें तैयार हैं। ‘पंजाब’ ने पूछा था।
‘‘सैनिक बेचैन: नियन्त्रण मुश्किल। अगला कदम क्या… ?’’ ‘फोर्ट बैरेक्स’ पूछ रहा था।
सेंट्रल कमेटी के सदस्य गॉडफ्रे की यह अन्तिम निर्णायक चेतावनी सुनकर सुन्न हो गए थे। गॉडफ्रे इतनी जल्दी अपनी धमकी को सही कर दिखाएगा ऐसा उन्होंने सोचा न था। उनकी यह उम्मीद कि सामान्य जनता का आज का समर्थन देखकर गॉडफ्रे हक्का–बक्का रह जाएगा, सैनिकों का घेरा उठवा देगा और बातचीत के लिए तैयार हो जाएगा धूल में मिल गई थी। सुन्न पड़ गए सेंट्रल कमेटी के सदस्यों ने कुछ ही देर में स्वयं को सँभाला। घड़ी ने बारह घण्टे बजाए। ‘अभी अढ़ाई घण्टे हैं। कोई न कोई निर्णय तो लेना पड़ेगा,’ खान ने सोचा और कमेटी के सारे सदस्यों को ‘तलवार’ के रिक्रिएशन हॉल में बुलाया।
‘‘दोस्तो!’’ खान ने शुरुआत की। खान की आवाज़ शान्त थी, ‘‘आज सुबह गॉडफ्रे ने हमें नेस्तनाबूद करने की निर्णायक चेतावनी दी है। इससे पता चलता है कि पिछले बारह घण्टों में ब्रिटिशों ने पर्याप्त सैन्यबल इकट्ठा करके नौसेना को नष्ट करने की पूरी तैयारी कर ली है। अब तक हम अनेक बार नेताओं से सम्पर्क स्थापित कर चुके हैं। उनकी एक ही सलाह है, बिना शर्त आत्मसमर्पण कर दो। अंग्रेज़ों की ताकत को देखते हुए उनसे टक्कर लेना वैसा ही है जैसा पतंगे का लौ से टकराना। ऐसी हालत में हमें क्या निर्णय लेना है यही तय करने के लिए हम यहाँ एकत्रित हुए हैं। हमारे सामने दो पर्याय हैं: पहला, अंग्रेज़ों को उन्हीं की ज़ुबान में जवाब दिया जाए और दूसरा, बिना शर्त आत्मसमर्पण कर दें।‘’ खान की बात पूरी होने से पहले ही तीन–चार लोग चिल्लाए:
‘‘अंग्रेज़ों को उन्हीं की ज़ुबान में जवाब दिया जाए।’’
‘‘दोस्तो! मेरी राय साफ है – अब पीछे नहीं हटना है।’’ मदन अपनी राय दे रहा था।
‘‘इस पार या उस पार! पिछले पाँच दिनों से हमने जिस तरह एकजुट होकर संघर्ष किया है, स्वतन्त्रता की आस में जो कुछ भी सहा है वह सब मिट्टी में मिल जाएगा। नौसैनिकों ने जिस विश्वास से हमारा साथ दिया, वह विश्वास यदि टूट गया तो नौसैनिक फिर कभी भी अपने ऊपर हो रहे अन्याय के ख़िलाफ़ एक नहीं होंगे। उनका जाग उठा आत्मसम्मान, स्वतन्त्रता के प्रति प्रेम जलकर खाक हो जाएगा। हमें समर्थन देने के लिए आज जो हज़ारों नागरिक रास्ते पर उतर आए हैं, वे हमें बुज़दिल कहेंगे, फिर कभी हम पर विश्वास नहीं करेंगे। इसलिए मेरा विचार है कि अब हमारा एक ही निर्धार हो – जीतेंगे या मरेंगे!’’
‘‘हम सैनिक हैं। लड़ते–लड़ते सीने पर गोलियाँ झेलेंगे मगर अपमान का जीवन नहीं जियेंगे। अब बन्दूकों की गोलियाँ और तोपों की मार – यही हमारा जवाब है। ब्रिटिशों के हवाई जहाज़ों के आकाश में उड़ने से पहले ही हमारी तोप गड़गड़ाने दो। गुलामी में जीने के बदले स्वतन्त्रता के लिए मौत को गले लगाएँगे।’’ चट्टोपाध्याय ज़ोर–ज़ोर से कह रहा था और गुस्से से थरथरा रहा था।
सभा में थोड़ी गड़बड़ होने लगी। हर कोई अपनी भावनाएँ व्यक्त करने के लिए अधीर था। दो–तीन लोग एक साथ बोलने लगे।
‘‘दोस्तो! कृपया शान्त रहें।’’ खान विनती कर रहा था, समझा रहा था, ‘‘आपकी भावनाएँ मैं समझ रहा हूँ। मगर याद रखिए, हम सैनिक हैं। हमें अनुशासित रहना ही होगा, धीरज खोने से कुछ नहीं होगा। यदि यह प्रश्न हम तीस–चालीस व्यक्तियों से ही सम्बन्धित होता तो हम फटाफट निर्णय ले सकते थे। मगर अब यह प्रश्न केवल मुम्बई के नौसैनिकों तक ही सीमित नहीं रहा, बल्कि कलकत्ता, मद्रास, कराची, जामनगर आदि विभिन्न नाविक तलों के सैनिक हमारे साथ हैं, जहाज़ों के सैनिक हमारे साथ हैं और अब तो मुम्बई और कराची के नागरिक भी हमारे समर्थन में रास्ते पर उतर आए हैं। हमारे निर्णय का प्रभाव उन पर भी पड़ेगा यह न भूलें। याद रखिये, हमारा एक भी ग़लत निर्णय हज़ारों की जान के लिए ख़तरा बन सकता है। यह सरकार नौदल को नष्ट करते–करते पूरे शहर को भी नेस्तनाबूद करने से नहीं हिचकिचाएगी । हमें सभी पहलुओं पर विचार करके शान्ति से निर्णय लेना चाहिए।’’
‘‘हम एक कोशिश और कर लेते हैं। गॉडफ्रे से मिलें, सरदार पटेल से बात करें। यदि इससे कोई मार्ग निकल आता है तो ठीक ही है, नहीं तो सारे जहाज़ों के प्रतिनिधियों के साथ चर्चा करके बहुमत से निर्णय लेंगे।’’ गुरु ने प्रस्ताव रखा।
गुरु के इस प्रस्ताव पर थोड़ी देर चर्चा हुई और एक राय से निर्णय लिया गया कि रात को नौ बजे तक इस दिशा में प्रयत्न किया जाए। रात को नौ बजे सभी प्रतिनिधियों की मीटिंग बुलाकर निर्णय लिया जाए।
खान, गुरु, दत्त और मदन गॉडफ्रे और सरदार पटेल से मिलने के लिए निकले।
‘‘सरदार पटेल की अपील देखी?’’ गुरुचरण ने यादव से पूछा।
‘‘हाँ, देखी और पढ़ी भी। संघर्ष में तटस्थता का बेहतरीन उदाहरण है।’’ यादव ने जवाब दिया, ‘‘और यह अपील सरकार के पिट्ठू टाइम्स ऑफ इण्डिया ने लब्ज़ दर लब्ज़ प्रकाशित की है। कांग्रेस के नेताओं के वक्तव्यों को पूरी तरह अनदेखा करने वाले अख़बार ने यह किया है। इससे समझ में आता है कि पटेल की अपील कितनी खुशामदी है सरकार की।’’
‘‘अरे, सरदार को तो हमारा विद्रोह स्वतन्त्रता संग्राम का विद्रोह ही प्रतीत नहीं होता, इसे वह दुर्भाग्यपूर्ण मानते हैं। सरदार यह तो कह ही नहीं रहे हैं कि हमारा संघर्ष अहिंसक मार्ग से चल रहा था, सरकार ने ही पहली शरारत की। हमारी माँगें क्या हैं इसका उल्लेख उन्होंने किया ही नहीं है।’’ गुरुचरण ने कहा।
‘‘उन्हें शायद यह डर होगा कि यह सब बताने से हमें जनता का असीम समर्थन मिलेगा और हमारा विद्रोह कामयाब होगा।’’ यादव की आवाज में चिढ़ थी।
Courtesy: storymirror.com

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