लेखक: राजगुरू द. आगरकर
अनुवाद: आ. चारुमति रानदास
खान के साथ गए साथियों को गॉडफ्रे से मिलने के लिए इन्तज़ार नहीं करना पड़ा। गॉडफ्रे उनकी राह ही देख रहा था। उसे उनका आगमन अपेक्षित था।
उसने प्रतिनिधियों को भीतर बुलाया।
‘‘आपकी शर्त के मुताबिक सभी सैनिक अपने–अपने जहाज़ों और नाविक तलों को वापस लौट गए हैं,’’ खान के शब्दों में चिढ़ थी।
‘‘और इसीलिए मैंने तुम्हें अन्दर बुलाया, ’’ गॉडफ्रे की बातों में अब हेकड़ी थी। उसने अपनी अगली चालें निश्चित कर रखी थीं।
‘‘हमारी दोपहर की बातचीत में सशस्त्र घेरे के बारे में कोई बात नहीं हुई थी, ’’ असलम ने कहा।
‘‘गलत कह रहे हैं। वो बातचीत थी ही नहीं, मैंने तुम्हें बुलाया नहीं था और तुम भी सिर्फ माँगें पेश करने आए थे,” गॉडफ्रे ने मगरूरियत से जवाब दिया।
‘‘मगर सशस्त्र सैनिकों का घेरा…’’
‘‘सरकार क्या कदम उठाए, यह बताने वाले तुम कौन होते हो?’’ गॉडफ्रे ने खान की बात काटते हुए कहा। ‘‘सामान्य जनता की सुरक्षा की दृष्टि से ही सरकार ने यह कदम उठाया है।’’
‘‘मगर हम तो अहिंसक थे और हैं।’’ कुट्टी ने कहा।
‘‘मगर कब हिंसक हो जाओगे, इसका कोई भरोसा नहीं।’’ गॉडफ्रे ने कहा।
‘‘अगर वैसा होता तो हम नाविक तलों पर वापस लौटते ही नहीं, ’’ बैनर्जी बोला।
‘‘तो मैं तुम्हें सख्ती से वापस भेजता,” गॉडफ्रे ने कहा।
‘‘तुम्हारे घेरे से सैनिक चिढ़ गए हैं,” खान ने कहा ।
‘‘कल की तुम्हारी गुंडागर्दी के कारण यह कदम उठाना पड़ा है। मैं मजबूर था,’’ गॉडफ्रे ने शान्त स्वर में कारण बताया।
‘‘कल हमारे हाथ से अनजाने में एकाध बात हो गई होगी। हमने उसके बदले अफ़सोस ज़ाहिर किया है, ’’ खान ने अपना पक्ष रखा।
‘‘स्वतन्त्रता की माँग करते हुए हिन्दुस्तान के दुकानदारों को सख़्ती से दुकान बन्द करने पर मजबूर करने या अपने ऊपर चढ़ आए सैनिकों के साथ मारपीट करने में कोई भी गलती नहीं थी या फिर इससे शान्ति को कोई ख़तरा भी नहीं था ’’ कुट्टी ने अपने कार्यों का समर्थन किया।
‘‘कल के हमारे आचरण से नहीं, बल्कि गोरी पुलिस ने और सैनिकों ने इस देश की जनता पर जो अत्याचार किये हैं, उनसे जन जीवन को ख़तरा उत्पन्न हो गया है, उसके बारे में क्या कहते हैं? हम जलियाँवाले हत्याकाण्ड को भूले नहीं हैं, ’’ बैनर्जी ने चीखते हुए कहा।
”That’s enough.” गॉडफ्रे चिल्लाया। ‘‘हमारे द्वारा उठाए गए कदम उचित हैं। हम सशस्त्र घेरा वापस नहीं लेंगे।’’
‘‘यदि सशस्त्र सैनिकों का घेरा फ़ौरन नहीं उठाया गया, तो गुस्साए हुए सैनिक क्या कर बैठेंगे इसका कोई भरोसा नहीं। यह न भूलिए कि आज़ाद शेर की अपेक्षा पिंजरे का शेर अधिक ख़तरनाक होता है। चिढ़े हुए सैनिकों को और अधिक चिढ़ाने में कोई फ़ायदा नहीं। बेकाबू सैनिकों को हम रोक नहीं पाएँगे, और फिर जो कुछ भी होगा उसकी जिम्मेदार सरकार होगी, इसलिए हमारी विनती है कि घेरा फ़ौरन उठा लिया जाए।’’ खान ने परिणामों की कल्पना दी। अब तक वह शान्त था।
‘‘मैं इस सुझाव पर विचार नहीं कर सकता। सैनिकों के हितों को ध्यान में रखकर ही हमने नाविक तलों का घेरा डाला है। योग्य समय आने पर घेरा उठा लिया जाएगा।’’ गॉडफ्रे का एक–एक शब्द निर्धार से भरा था।
‘‘सैनिकों ने आज तक संयमपूर्वक बर्ताव किया है और घेरा उठाने पर भी वे संयम से ही व्यवहार करेंगे इसकी मैं गारण्टी देता हूँ।’’ खान की शान्ति अभी भी ढली नहीं थी।
गॉडफ्रे की नीली आँखों में छिपी धूर्तता उसके शब्दों से बाहर निकली, ‘‘घेरा हटाने का निर्णय तो अब आर्मी का जनरल H.Q. ही लेगा। हाँ, यदि तुम बिना शर्त काम पर लौटने वाले हो तो मैं घेरा उठाने की सिफ़ारिश करूँगा।’’
‘‘यह सम्भव नहीं है!’’ बैनर्जी और कुट्टी चीखे।
‘‘आप हमारी सारी माँगें मान्य करें। हम फ़ौरन काम पर लौट आएँगे।’’ खान ने उसे पेच में डाल दिया।
गॉडफ्रे ने पलभर को सोचा, ‘‘तुम्हारी सेवा सम्बन्धी माँगों पर मैं विचार करूँगा, मगर राजनीतिक माँगें…सॉरी! मुझे इसका अधिकार नहीं है।’’ गॉडफ्रे अब शान्त आवाज़ में बोल रहा था।
‘‘हमारी राजनीतिक माँगें भी सेवा सम्बन्धी माँगों जितनी ही महत्त्वपूर्ण हैं। हम राजनैतिक माँगें छोड़ेंगे नहीं। दोनों तरह की माँगें पूरी होनी चाहिए।’’ खान ने दृढ़ता से कहा।
”I am sorry, मैं कुछ नहीं कर सकता और तुम लोग ज़िद्दी हो। इससे कोई भी नतीजा निकलने वाला नहीं। मेरी शर्तें मानने के लिए जब तुम तैयार हो जाओ, तो मिलेंगे।’’ गॉडफ्रे ने मीटिंग खत्म होने का इशारा किया और प्रतिनिधि बाहर निकले।
‘चिढ़े हुए सैनिक यदि बेकाबू हो गए तो परिस्थिति हाथ से निकल जाएगी।’ गॉडफ्रे के मन में सन्देह उठा और वह बेचैन हो गया।
‘ ऐसा हुआ तो सरकार अकेली पड़ जाएगी और फिर…’ उसने पाइप सुलगाया, दो दमदार कश लिये। कॉन्फ्रेंस हॉल में गर्मी होने लगी इसलिए उसने समुद्र की ओर की एक खिड़की खोल दी। डॉकयार्ड वार्फ के जहाज़ शान से डोल रहे थे; मगर आज उन जहाज़ों पर उसकी हुकूमत नहीं थी, और उन पर रोज़ फ़हराने वाली यूनियन एनसाइन भी नहीं थी। उसे वह एक अपशगुन लगा और उसने खिड़की बन्द कर दी। ‘अब फूँक–फूँककर ही कदम रखना होगा।’ वह पुटपुटाया।
‘मेरी सफ़लता के मार्ग का एक रोड़ा – कांग्रेस और लीग का – दूर हो गया है। अब रोड़ा है सैनिकों की एकता का। चाहे मैंने उन्हें विभाजित कर दिया है, मगर मन से तो वे एक ही हैं। उनके मनों को विभाजित करना होगा। मेरी सफ़लता का रथ सैनिकों की फूट के मार्ग से ही जाएगा।’
इसी ख़याल में वह बेचैनी से चक्कर लगाने लगा। उसके मन में एक टेढ़ी चाल रेंग गई। शाम के समाचार–पत्र में सरकारी बुलेटिन के साथ–साथ सैनिकों द्वारा जारी बुलेटिन भी प्रकाशित हुआ था। ‘पिछले दो दिनों से जहाज़ों पर खाने–पीने के सामान की सप्लाई नहीं हुई है। अनेक सैनिक भूखे हैं।’ सैनिकों के बुलेटिन के ये वाक्य उसे याद आए। उसके चेहरे पर मुस्कराहट फैल गई।
‘यदि इन सैनिकों के सामने अच्छा खाना रखा जाए तो पेट की आग मन की आग को मात दे देगी। आज़ादी की अपेक्षा रोटी अधिक मूल्यवान प्रतीत होगी। खाना लिया जाए या नहीं इस बात को लेकर सैनिकों में गुट बन जाएँगे और मेरा काम आसान हो जाएगा।’ वह सोच रहा था। कामयाबी की उम्मीद से उसने रॉटरे को पुकारा।
रॉटरे अदब से भीतर आया।
‘‘कुर्ला डिपो को फ़ोन करके फ्रेश मिल्क, शक्कर, ड्रेस्ड चिकन, आटा, दाल, टिन्ड फ्रूट्स – जो कुछ भी उपलब्ध हो वे खाद्य पदार्थ पूरी ट्रक भर के फ़ौरन कैसेल बैरेक्स भेजने को कह दो।’’ गॉडफ्रे ने आदेश दिया।
रॉटरे हुक्म की तामील करने के लिए पीछे मुड़ा। गॉडफ्रे ने उसे रोकते हुए कहा, ‘‘और यह देखो कि यह खाद्य सामग्री कैसेल बैरेक्स में पहुँचे, इससे पहले सैनिकों को यह पता चलने दो कि प्रतिनिधियों के साथ हुई चर्चा के फलस्वरूप यह खाद्य सामग्री भेजी गई है। सेंट्रल कमेटी में फूट पड़ गई है ।’’
‘‘मतलब, सैनिकों ने आत्मसमर्पण कर दिया? वे काम पर जाने को तैयार हैं?’’ रॉटरे ने उत्सुकता से पूछा।
‘‘वैसा कुछ भी नहीं हुआ है। सैनिक तो अपनी माँगें छोड़ने के लिए तैयार ही नहीं हैं। यदि उनमें फूट पड़ जाती है तभी हम उन्हें हरा सकते हैं। उनमें फूट पड़े, इसलिए यह कदम उठाया है।’’ गॉडफ्रे ने जवाब दिया।
रॉटरे आदेशानुसार काम पर लग गया।
खान और अन्य प्रतिनिधि गॉडफ्रे से मिलकर ‘तलवार’ पर पहुँचे तो सूर्यास्त हो चुका था। कमेटी के अन्य सदस्य बेचैनी से उनकी राह ही देख रहे थे।
‘‘समझौता करने का अधिकार तुम्हें किसने दिया था? निर्णय लेने से पहले तुम लोगों ने कमेटी के सदस्यों से चर्चा क्यों नहीं की?’’ चट्टोपाध्याय ने सवालों की तोप दाग दी।
‘‘अरे, क्या बकवास कर रहे हो? कैसा समझौता? किसने किया समझौता? हमारा संघर्ष तो चल ही रहा है। अब पीछे नहीं हटना है; और हमने गॉडफ्रे से यही कहा है।’’ आश्चर्य से विस्मित होते हुए खान ने कहा।
‘‘मतलब, अभी फॉब हाउस से आया हुआ फ़ोन…’’ पाण्डे पुटपुटाया।
‘‘कैसा फोन? किसने किया था फ़ोन?’’ कुट्टी ने पूछा।
‘‘ले. मार्टिन ने, ’’ पाण्डे ने जवाब दिया।
‘‘कौन है यह मार्टिन? क्या कहा उसने?’’ बैनर्जी ने पूछा।
‘‘फोन मैंने रिसीव किया था,’’ चट्टोपाध्याय ने कहा, ‘‘उसने फ़ोन पर यह कहा कि समझौता हो गया है, सैनिक काम पर वापस लौट आएँ। समझौते के अनुसार खाद्य सामग्री से भरा हुआ एक ट्रक कैसेल बैरेक्स में रात के आठ बजे तक भेजा जा रहा है।’’
‘‘हम झुक नहीं रहे हैं, यह देखकर यह चाल चली है क्या?’’ असलम ने कहा। अब उसकी आवाज़ में चिढ़ थी। ‘‘दोस्तो! गॉडफ्रे सशस्त्र घेरा उठाने के लिए तैयार नहीं है। राजनीतिक माँगों को छोड़कर अन्य माँगों के बारे में चर्चा करने के लिए वह तैयार है। हमारी सारी माँगें मान्य करो; हम काम पर लौट आएँगे – ऐसा हमने उससे साफ़–साफ़ कह दिया है, इसीलिए हममें फूट डालने की कोशिश की जा रही है।’’ खान ने शान्त आवाज़ में कहा।
‘‘सत्याग्रह, अहिंसा…. ये सब छोड़–छाड़कर अब सीधे–सीधे हथियार उठा लेना चाहिए, तभी ये गोरे सीधे लाइन पर आएँगे।’’ क्रोधित होकर चट्टोपाध्याय ने कहा।
”Cool down friend, don’t lose your temper.” खान शान्त था। ‘‘गॉडफ्रे और रॉटरे इसी की राह देख रहे हैं। यदि हम एकाध गोली चला बैठे तो वे तोप के गोलों की बारिश कर देंगे। एकदम Full scale attack कर देंगे। चूँकि पहली शुरुआत हमारी तरफ़ से हुई इसलिए हम सहानुभूति भी खो बैठेंगे!’’
‘‘सारे सैनिकों को सावधान करना होगा, वरना ग़लतफहमी में कुछ और ही हो जाएगा। सावधानी के तौर पर हम एक सन्देश भेजेंगे।’’ दत्त के सुझाव को सबने मान लिया। खान ने सन्देश तैयार किया:
‘ सुपरफास्ट – प्रेषक – सेन्ट्रल कमेटी – प्रति – सभी नौदल जहाज़ और बेसेस = विद्रोह में शामिल सैनिकों की एकता भंग करने के इरादे से वरिष्ठ नौदल अधिकारी अफ़वाहें फैला रहे हैं। नौसैनिक सिर्फ डेक सिग्नल स्टेशन से आए सन्देशों पर ही विश्वास करें। अन्य ख़बरों पर विश्वास न करें। तुम सब सेन्ट्रल कमेटी से बँधे हुए हो। सेन्ट्रल कमेटी के आदेश तुम्हें डेक सिग्नलिंग स्टेशन द्वारा प्राप्त होंगे। अगली सूचना मिलने तक शान्त और अहिंसक रहो।‘
सन्देश डेक सिग्नल स्टेशन को ट्रान्समिशन के लिए भेजा गया और मीटिंग आगे बढ़ी।
‘‘अब तो असल में लड़ाई की शुरुआत हुई है, ’’ असलम ने कहा।
‘‘सम्पूर्ण परिस्थिति पर विचार करके अपनी चाल निश्चित करना ज़रूरी है।’’ दत्त ने सुझाव दिया।
‘‘विभिन्न बन्दरगाहों के तलों के और जहाज़ों के सैनिकों के संघर्ष में शामिल होने की उत्साहजनक ख़बरें तो आ रही हैं, मगर अन्य दो दलों के सैनिक अभी भी शान्त हैं। 17 फरवरी को हवाईदल की दो यूनिट्स में जो विद्रोह हुआ था उसके बाद तो ऐसा लग रहा था कि उनका विद्रोह ज़ोर पकड़ लेगा, मगर वैसा हुआ नहीं।’’ खान परिस्थिति स्पष्ट कर रहा था।
‘‘ ‘पंजाब’ पर पीने के पानी का स्टॉक खत्म हो रहा है। खाद्य सामग्री बिलकुल नहीं बची है। मेरा ख़याल है कि सभी जहाज़ों पर यही हाल है, ’’ चैटर्जी ने जानकारी दी।
‘‘नाविक तलों की परिस्थिति भी इससे भिन्न नहीं है। अनेक सैनिक खाना तो क्या, एक मग पानी के लिए भी होटल पर निर्भर हैं; और अब तो भूदल सैनिकों का घेरा पड़ा है, होटल से खाना भी नहीं ले सकेंगे। यदि परिस्थिति ऐसी ही बनी रही तो सैनिकों का मनोबल घटेगा और उन्हें काबू में रखना कठिन हो जाएगा।’’ गुरु ने परिस्थिति बतलाई।
‘‘इसी का फ़ायदा लेकर हममें फूट डालने के लिए गॉडफ्रे ने रसद भेजने का निर्णय लिया है। ऐसी स्थिति में क्या हम उन खाद्य पदार्थों को स्वीकार करें? क्या सिर्फ खाने के लिए और पानी के लिए अपना संघर्ष पीछे लें?’’ खान ने पूछा।
वहाँ उपस्थित सभी पैंतालीस सदस्यों ने विरोध किया, ‘‘अब पीछे नहीं हटेंगे!’’ उन्होंने चीखकर कहा।
‘‘मेरा विचार है कि हम कैसेल बैरेक्स एवं अन्य जहाजों को सन्देश भेजें कि वे खाद्य पदार्थ स्वीकार न करें। साथ ही सैनिकों को एक निश्चित कार्यक्रम दें।’’ दत्त ने सुझाव दिया और इस कार्यक्रम पर चर्चा की गई।
बैठक डेढ़ घंटे चली। मदन और गुरु ने सभी जहाज़ों और नाविक तलों के लिए सन्देश तैयार किया:
‘‘अर्जेंट – प्रेषक: सेंट्रल कमेटी – प्रति: नौदल के सभी जहाज़ और तल = परिस्थिति चाहे कितनी ही गम्भीर क्यों न हो फिर भी सप्लाई केन्द्र से लाई गई रसद स्वीकार न करें। यदि खाद्यान्न इस सन्देश के मिलने से पहले पहुँच गए हों, तो उनका इस्तेमाल न करें। समिति को इस बात की पूरी कल्पना है कि जहाज़ों और तलों पर पीने के पानी और खाद्यान्नों की कमी है। डॉकयार्ड को विनती की है कि जहाज़ों को पानी की सप्लाई की जाए। हमारी असली लड़ाई तो अब शुरू हुई है और सफ़र लम्बा है। हमारी सफ़लता हमारी एकता और परस्पर सहयोग पर निर्भर है। कमेटी द्वारा तैयार किए गए निम्नलिखित पाँच सूत्री कार्यक्रम का सभी पालन करें:
1. यदि सशस्त्र सैनिकों का घेरा उठाया गया तो सेन्ट्रल कमेटी की सूचनाओं की प्रतीक्षा करें।
2. यदि घेरा नहीं उठाया गया तो सभी सैनिक कल दिनांक 21 से सुबह साढ़े सात बजे से भूख हड़ताल शुरू करेंगे ।
3. इस बात का ध्यान रखें कि किसी भी प्रकार की हिंसा न हो।
4. भूख हड़ताल सशस्त्र सैनिकों का घेरा उठने तक जारी रहेगी ।
5. अफवाहों पर विश्वास न करें।
सभी सैनिक पूरी तरह से इस पाँच सूत्री कार्यक्रम का पालन करें।’’
कमेटी ने अपने पाँच सूत्री कार्यक्रम की प्रतियाँ गॉडफ्रे और रॉटरे को भेजीं।
सैनिक अभी भी महात्माजी के अहिंसा और सत्याग्रह के सिद्धान्त को छोड़ने को तैयार नहीं थे। उनके द्वारा तैयार किए गए पाँच सूत्री कार्यक्रम पर महात्माजी की चिन्तन प्रणाली का प्रभाव था।
Courtesy: storymirror.com

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