लेखक: राजगुरू द. आगरकर
अनुवाद: आ. चारुमति रामदास
दिल्ली में लॉर्ड एचिनलेक आज़ाद से पूर्वनियोजित मीटिंग की तैयारी कर रहा था। अलग–अलग शहरों से प्राप्त हुई सुबह की रिपोर्ट्स का वह अध्ययन कर रहा था। मुम्बई से प्राप्त रिपोर्ट में रॉटरे ने लिखा था, ‘‘कांग्रेस और मुस्लिम लीग के नेता विद्रोह से दूर हैं । सरदार पटेल मुम्बई में हैं फिर भी सैनिक अब तक उनसे मिले नहीं हैं। विश्वसनीय सूत्रों से ज्ञात होता है कि सरदार किसी भी हालत में समर्थन नहीं देंगे, अरुणा आसफ़ अली के पल्ला झाड़ लेने के बाद अन्य समाजवादी नेता संघर्ष को कहाँ तक समर्थन देंगे इस बारे में सन्देह है ।’’
सिंध के गवर्नर से प्राप्त रिपोर्ट में कहा गया था, ‘‘विद्रोही सैनिक यदि कांग्रेस तथा लीग के नेताओं से मिले भी हैं, तो भी उनसे समर्थन प्राप्त करने में असफल रहे हैं ।’’
सुबह की रिपोर्ट में सैनिकों के विद्रोह के बारे में महात्माजी द्वारा पुणे में व्यक्त राय भी थी । ‘महात्माजी का समर्थन नहीं; मतलब विद्रोह आधा लड़खड़ा गया ।’ एचिनलेक ने अपने आप से कहा।
‘अब इस विद्रोह को कुचलना मुश्किल नहीं है। सैनिकों का विद्रोह अपने स्वार्थ के लिए है, वे हिंसा पर उतर आए हैं – ऐसा झूठ प्रचार माध्यमों की सहायता से ‘सच’ कहकर फैलाना चाहिए ।’ वह खुश था, उसने घड़ी की ओर देखा। दस बजने में पाँच मिनट कम थे । शोफ़र ने गाड़ी तैयार होने की सूचना दी ।
ठीक दस बजे लॉर्ड एचिनलेक पार्लियामेंट हाउस पहुँचा, आज़ाद उसकी राह ही देख रहे थे। एचिनलेक के चेहरे पर हल्की–सी मुस्कान थी । ‘अब आने दो चर्चा के लिए, तुरुप के सारे पत्ते मेरे हाथों में हैं ।’ मगर फ़ौरन उसने अपने आप से कहा, ‘सावधान’, उसके अंतर्मन ने उसे सावधान किया, ‘अधिकार का रोब दिखाकर, तुरुप के पत्ते दिखाने से पूरा खेल मटियामेट हो जाएगा । रोब दिखाना नहीं है, मीठी आवाज़ में बात करना है, विश्वास निर्माण करना है और फिर असावधानी के एक क्षण में धोबी पछाड़ देना है ।’
पहले कुछ मिनट मौसम की बातें होती रहीं ।
‘‘आपको पता चल ही गया होगा ?’’ एचिनलेक ने शुरुआत की।
‘‘किस बारे में ?’’
‘‘कल प्राइम मिनिस्टिर एटली ने हाउस ऑफ कॉमन्स में घोषणा की है कि हिन्दुस्तान में कैबिनेट मिशन भेजा जाएगा ।’’ एचिनलेक ने एक गहरी साँस छोड़ी । ‘‘अब शायद हमारी यहाँ की हुकूमत ख़त्म हो जाएगी। जो चार दिन बचे हैं, वे शान्ति से गुज़र जाएँ यही इच्छा है!’’ आवाज़ की धूर्तता छिपाते हुए एचिनलेक ने कहा ।
तीन मन्त्रियों के शिष्टमण्डल के बारे में आज़ाद को सूचना मिली थी। अंग्रेज़ों को इतनी जल्दी देश छोड़कर जाना पड़ेगा, ऐसा लगता नहीं था । एचिनलेक की बातों से ऐसा लग रहा था कि वह वक्त आ गया है।
‘ स्वतन्त्रता हमने प्राप्त की और अहिंसा तथा सत्याग्रह के मार्ग से प्राप्त की ऐसा गर्व से कह सकेंगे, ’ आज़ाद के मन में ख़याल तैर गया। ‘मगर नौसेना का विद्रोह? अगर हिंसा के मार्ग पर चला गया तो… नहीं, कांग्रेस को इस विद्रोह से दूर ही रखना है ।’ उन्होंने मन में निश्चय किया ।
‘‘मुम्बई में नौसैनिकों द्वारा मचाई गई हिंसा के बारे में आपको पता चला ही होगा। हम बड़े संयम से परिस्थिति से निपट रहे हैं । कल सैनिकों ने दुकानदारों से, विशेषत: विदेशी दुकानदारों से सख़्ती से दुकानें बन्द करवाईं। इसके लिए उन्होंने हिंसा का सहारा लिया। दो कॉन्स्टेबल्स को बेदम मारा। आज वे अस्पताल में एडमिट हैं । अंग्रेज़ों के प्रति उनके गुस्से को मैं समझ सकता हूँ; मगर अमेरिका ने उनका क्या बिगाड़ा है? उन्होंने अमेरिका का राष्ट्रीय ध्वज भी जला दिया…’’
एचिनलेक पलभर को रुका। वह आज़ाद के चेहरे के भाव परख रहा था ।
‘‘ये मुझे पता चला था, मगर ये सब इस हद तक पहुँच गया होगा ऐसा सोचा नहीं ।’’ आज़ाद ने चिन्ता के सुर में कहा ।
सैनिकों द्वारा अमेरिकन कोन्सुलेट से माँगी गई माफी, खान द्वारा सैनिकों से शान्त रहने की और अहिंसा के मार्ग पर चलने की अपील – इसके बारे में धूर्त एचिनलेक ने कुछ भी नहीं कहा था । उसने सैनिकों का सिर्फ काला पक्ष ही दिखाया था ।
‘‘कांग्रेस की इस विद्रोह की बाबत क्या नीति रहेगी ?’’ एचिनलेक ने पूछा ।
आज़ाद को इस सवाल का जवाब देने में ज़्यादा सोचना ही नहीं पड़ा ।
‘‘कांग्रेस इस विद्रोह का समर्थन न करे ऐसा मेरा मत है, क्योंकि इन सैनिकों ने विद्रोह के बारे में कांग्रेस को कोई पूर्व सूचना नहीं दी थी । और दूसरा कारण यह कि सैनिकों द्वारा अपनाया गया मार्ग कांग्रेसी विचारधारा के विरुद्ध है।’’
एचिनलेक के चेहरे पर समाधान था । अपेक्षित उत्तर उसे मिल गया था ।
मगर आज़ाद के चेहरे पर शरारती हँसी थी। वे एचिनलेक की ओर देखते हुए बोले, ‘‘जो मैंने कहा, वह मेरा मत था, अपने सहकारियों के विचार जानना भी तो ज़रूरी है। अगर मुझे इस सम्बन्ध में सरकार की भूमिका का पता चला तो मैं उसे प्रस्तुत कर सकूँगा ।’’
एचिनलेक ने एक गहरी साँस ली, पलभर को कुछ विचार किया और धीमी आवाज़ में कहना शुरू किया:
‘‘हमारी इस सम्बन्ध में भूमिका स्पष्ट है। ये सैनिक हमारे हैं। यदि कोई नादान मेमना राह भूल जाए तो उसे अकेला न छोड़कर रेवड़ में वापस लाना हमारी नीति है । मुम्बई के फ्लैग ऑफिसर एडमिरल रॉटरे इतवार से सैनिकों से मिल रहे हैं; बातचीत करने की अपील कर रहे हैं, मगर सैनिक कोई जवाब ही नहीं दे रहे। यदि सैनिक अपनी राजनीतिक माँगें छोड़ने को तैयार हों तो हम उनकी सभी माँगों पर सहृदयता से विचार करेंगे। कांग्रेस इससे दूर रहने वाली है – यह अच्छी बात है। यदि अन्य पार्टियाँ सैनिकों को समर्थन देने के लिए आगे आएँगी तो हम उनसे कहेंगे कि यह हमारा अन्दरूनी मामला है । इसमें हस्तक्षेप हम बर्दाश्त नहीं करेंगे।’’ उनकी आवाज़ में अब दहशत थी ।
‘‘अगर कांग्रेस सैनिकों को काम पर लौटने की सलाह देती है तो क्या उन्हें काम पर हाज़िर कर लिया जाएगा ?’’ आज़ाद ने पूछा। ‘‘दूसरी बात यह कि काम पर लौटे हुए सैनिकों पर कोई दोषारोपण न किया जाए और उनकी सेवा सम्बन्धी समस्याओं को तत्परता से सुलझाया जाए, वरना…’’
‘‘हमें इस प्रश्न को देर तक लटकाए नहीं रखना है । जैसे ही सैनिक काम पर लौटते हैं, हम चर्चा आरम्भ कर देंगे। हमें इस प्रश्न को सामोपचार से सुलझाना है। मेरे अधिकार क्षेत्र में जो कुछ भी सम्भव है, मैं करूँगा।’’ एचिनलेक ने जवाब दिया ।
मीटिंग खत्म हो गई । आज़ाद और एचिनलेक दोनों खुश थे । बाहर निकलते–निकलते आज़ाद ने निश्चय किया कि सैनिकों से काम पर लौटने के लिए अपील करेंगे; और एचिनलेक ने अब तक का सुरक्षात्मक रुख छोड़कर आक्रामक व्यूह रचना करने का निर्णय लिया ।
लॉर्ड एचिनलेक ने पार्लियामेंट हाउस से ही जनरल बिअर्ड से सम्पर्क किया और उसे सूचित किया। उसकी योजना के सम्बन्ध में यथोचित निर्देश देकर विशेष विमान द्वारा फ्लैग ऑफिसर कमांडिंग रॉयल इण्डियन नेवी, वाइस एडमिरल गॉडफ्रे को मुम्बई भेजने की सूचना दी। विद्रोह कुचलने की ज़िम्मेदारी अब गॉडफ्रे को सौंपी गई है, यह भी बताया।
सेंट्रल कमेटी की बैठक शुरू हुई। आज की बैठक में पैंतालीस प्रतिनिधि उपस्थित थे। उपस्थित सदस्यों के चेहरों पर आत्मविश्वास था। आसमान से बादल और सैनिकों के मन की निराशा कभी की छँट चुकी थी ।
‘‘अरुणा आसफ़ अली ने सूचना दी है कि राजनीतिक माँगें छोड़कर अन्य सेवा सम्बन्धी माँगों के लिए बातचीत की जाए। इसके बारे में सबसे पहले चर्चा कर ली जाए ऐसा मेरा विचार है,’’ चट्टोपाध्याय ने सुझाव दिया।
‘‘बातचीत के मार्ग का हम अभी से विचार न करें । हालाँकि राष्ट्रीय नेता हमारे साथ नहीं हैं, फिर भी जनता का समर्थन निश्चित ही हमें मिलेगा। इसी समर्थन के बल पर हम संघर्ष करेंगे। बातचीत के मार्ग पर विचार करना सैनिकों के धैर्य और उनकी ज़िद को तोड़ने जैसा होगा।‘’ दत्त ने अपना मत रखा।
”Let us hope for the best and prepare for the worst!” खान ने कहा।
‘‘सेवा सम्बन्धी माँगें चाहे एक बार हम छोड़ भी दें, मगर राजनीतिक माँगें छोड़ेंगे तो नहीं, हाँ, एकाध और माँग भी उसमें जोड़ देंगे। हमें इंडोनेशिया में चल रहे स्वतन्त्रता संग्राम को नेस्तनाबूद नहीं करना है, इसलिए हिन्दुस्तानी सेना को इंडोनेशिया से बाहर निकालना ही चाहिए, यह हमारी माँग है। हिन्दुस्तान में जो सरकार फिलहाल अस्तित्व में है वह अवैध मार्ग से प्रस्थापित की गई है। जिस सरकार को जनता का समर्थन प्राप्त नहीं है उसे हटाने के लिए लड़ने का, विरोध करने का नैसर्गिक और नैतिक अधिकार है । उसका उपयोग करने वाले नागरिकों को बन्दी बनाने का अधिकार इस सरकार को नहीं है। सरकार को इन राजनीतिक कैदियों को मुक्त करना ही चाहिए ।’’ खान ने राजनीतिक माँगों का स्पष्टीकरण देते हुए उनका महत्त्व बताया ।
‘‘तीसरी माँग, ‘हिन्दुस्तान छोड़ो’ होनी चाहिए,’’ पाण्डे ने माँग की जिसका अनेक सदस्यों ने समर्थन किया ।
‘‘हमारी पहली दो माँगें ही इस तरह की हैं कि उनको पूरा करने का मतलब होगा अंग्रेज़ों द्वारा हिन्दुस्तान छोड़ने की तैयारी आरम्भ करना,’’ खान ने स्पष्ट किया ।
‘‘आज, जब यह धीरे–धीरे स्पष्ट हो रहा है कि राष्ट्रीय नेता हमें समर्थन नहीं देंगे, सरकारी प्रसार माध्यम हमारे विरुद्ध प्रचार किये जा रहे हैं, फिर भी हमें सरदार पटेल तथा अन्य राष्ट्रीय नेताओं से मिलना चाहिए ऐसा मेरा विचार है ।’’ गुरु अपनी राय दे रहा था, ‘‘यह हमें करना चाहिए जिससे यदि कल हमें मजबूरी में संघर्ष करना पड़ा तो हम कह सकेंगे कि हम संघर्ष नहीं चाहते थे; हम राष्ट्रीय नेताओं से मार्गदर्शन करने की विनती कर रहे थे, पर उन्होंने हमारा साथ नहीं दिया ।’’
गुरु की यह राय सबने मान ली और सेंट्रल कमेटी की भिन्न–भिन्न उपसमितियाँ बनाई गईं ।
‘‘सैनिकों की हिंसा के लिए किस प्रकार प्रवृत्त किया जाए, पहले यह देखो और फिर धीरे–धीरे आक्रामक रुख अपनाओ। मगर एक बात का ध्यान रखो – राष्ट्रीय पार्टियों और उनके नेताओं को यही प्रतीत होना चाहिए कि सैनिकों ने ही सरकार को हिंसा पर मजबूर किया।’’ एचिनलेक ने निकलते–निकलते गॉडफ्रे को सूचनाएँ दी थीं।
‘‘वक्त पड़े तो सेना का इस्तेमाल करने से पीछे न हटना, इसके लिए सैन्यबल उपलब्ध करवाने की ज़िम्मेदारी जनरल बिअर्ड को सौंपी है। उससे सलाह–मशविरा करके आगे की व्यूह–रचना निश्चित करना।’’
गॉडफ्रे मुम्बई में उतरा तो इसी निश्चय के साथ कि वह इस तूफ़ान का सामना करके सफ़लतापूर्वक उसे वापस फेर देगा। गॉडफ्रे ने आज तक अनेक तूफानों का सफ़लतापूर्वक सामना किया था, मगर यह तूफ़ान अलग ही तरह का था – उसकी परीक्षा लेने वाला!
मुम्बई पहुँचते ही उसने तुरन्त मुम्बई के नौसेना तलों एवं जहाज़ों के कमांडिंग ऑफिसर्स की मीटिंग बुलाई और 18 तारीख से हुई घटनाओं को समझ लिया।
‘‘किंग द्वारा इस्तेमाल की गई भाषा अपमानकारक थी और देश की मौजूदा परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए उसे ऐसी भाषा का प्रयोग नहीं करना चाहिए था ।’’ रॉटरे के इस मत से गॉडफ्रे ने सहमति जताई ।
‘‘तुमने कमांडिंग ऑफ़िसर बदल दिया यह अच्छा किया। मगर मुझे एक बात बताओ, क्या यह विद्रोह पूर्व नियोजित था ?’’ गॉडफ्रे ने पूछा ।
‘‘नहीं, मुझे ऐसा नहीं लगता। एक चिनगारी गिरी जिससे आसपास की सूखी घास भी जलने लगी, बस इतना ही!’’ रॉटरे ने जवाब दिया ।
‘‘आग बुझाते समय हम जिस सिद्धान्त का प्रयोग करते हैं, उसी को यहाँ लागू करना है ।’’
‘‘मतलब ?’’
‘‘आग पकड़ सकें ऐसी चीजें दूर हटाएँ; ऑक्सीजन की सप्लाई बन्द करें और तापमान कम करें। यहाँ भी हमें बस यही करना है। सैनिक यदि इकट्ठे हुए तो उनकी ताकत बढ़ेगी और आग भड़केगी, इसलिए पहले सैनिकों के गुट बनाकर उन्हें अलग–अलग स्थानों पर ठूँस दें; राष्ट्रीय नेताओं, अर्थात् ऑक्सीजन सप्लाई करने वालों को सैनिकों से दूर रखने का काम चल ही रहा है। किसी एक गुट की छोटी–मोटी माँगें मान्य करके उनके पाल की हवा ही निकाल लें ।’’
गॉडफ्रे ने लाइन ऑफ एक्शन समझाई ।
‘‘हम कोशिश करेंगे। मगर मुझे ऐसा लगता है कि हमें हथियारों का इस्तेमाल करना चाहिए ।’’ गॉडफ्रे की योजना के बारे में रॉटरे आशंकित था ।
‘‘हमें एकदम आक्रामक नहीं होना है, मगर उन्हें ऐसा सबक सिखाना है कि bastards दुबारा विद्रोह का नाम तक नहीं लेंगे।’’ गॉडफ्रे की नीली आँखों में चिढ़ साफ़ नज़र आ रही थी । ‘‘सैनिकों को अपनी–अपनी ‘बेस’ पर फ़ौरन पहुँचने की सूचना देंगे। इसके लिए ट्रकों की व्यवस्था करें। वक्त पड़ने पर सैनिकों को ट्रकों में ठूँसकर उनके अपने–अपने जहाज़ों और बेसेस पर पहुँचा देंगे ।’’
‘‘यदि सैनिकों ने विरोध किया तो ?’’ रॉटरे ने सन्देह व्यक्त किया।
‘‘यदि ऐसा होता है तो बड़ी अच्छी बात है, कुत्ते को पागल बताकर गोली चलाना… सैनिकों को बलपूर्वक ले जाएँगे; और जहाज़ों पर तथा ‘बेसेस’ पर फ़ौरन पहरे लगा देंगे। उन्हें निहत्था कर देंगे।’’ गॉडफ्रे की योजना पर रॉटरे मन ही मन खुश हो गया।
Courtesy: storymirror.com

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