लेखक: राजगुरू द. आगरकर
अनुवाद: आ. चारुमति रामदास
‘‘क्यों रे, आज बड़ा खुश दिखाई दे रहा है ?’’ गुरु ने दत्त से पूछा ।
आजकल दत्त की ओर विशेष ध्यान नहीं दिया जा रहा था । पहरे पर अब सिर्फ दो ही हिन्दुस्तानी सैनिक रखे जाते थे । दत्त को सभी सुविधाएँ दी जा रही थीं । शाम को एक घण्टा टहलने की भी इजाजत थी । टहलते समय एक अधिकारी उसके साथ होता था । पहले दोनों ओर सन्तरी होते थे, अब उन्हें भी हटा दिया गया था । दत्त आज अपनी ही धुन में मस्त था । सीटी बजाते हुए सेल में ही चक्कर लगा रहा था ।
‘‘अरे खुश क्यों न होऊँ ? आज़ादी मिलने वाली है, आज़ादी!’’ दत्त ने हँसते हुए जवाब दिया ।
‘आजादी’ शब्द सुनकर गुरु और जी. सिंह चौंक गए ।
‘‘क्या अंग्रेज़ों ने देश छोड़कर चले जाने का और हिन्दुस्तान को आज़ादी देने का फ़ैसला कर लिया है ?’’ जी. सिंह ने पूछा ।
‘‘आज़ादी क्या इतनी आसानी से मिलती है ? उसके लिए स्वतन्त्रता की वेदी पर हजारों सिरकमलों की आहुति देनी पड़ती है । स्वतन्त्रता का कमल रक्त मांस के कीचड़ में उत्पन्न होता है ।’’ गुरु ने उद्गार व्यक्त किये ।
‘‘ठीक कह रहे हो । मैं बात कर रहा हूँ अपनी आज़ादी की, देश की आज़ादी की नहीं ।’’ दत्त ने कहा ।
‘‘तुझे कैसे मालूम ?’’ गुरु ने आश्चर्य से पूछा । ‘‘क्या पूछताछ ख़त्म हो गई ? कमेटी ने फैसला सुना दिया ?’’
‘‘नहीं, पूछताछ का नाटक तो अभी भी चल ही रहा है । मगर मुझे यह पता चला है कि कमाण्डर–इन–चीफ का ख़ास मेसेंजर यहाँ आया था । उसने एक सीलबन्द लिफाफा पूछताछ कमेटी के अध्यक्ष एडमिरल कोलिन्स को दिया है ।
कमाण्डर–इन–चीफ के आदेशानुसार मुझे नौसेना से मुक्त करने वाले हैं और छह महीनों के कठोर कारावास के लिए सिविल पुलिस के अधीन करने वाले हैं ।’’ दत्त ने स्पष्ट किया ।
‘‘ये तुझे किसने बताया ?’’ जी. सिंह ने पूछा ।
‘‘रोज शाम को जब मुझे घुमाने के लिए बाहर ले जाया जाता है तो साथ में एक अधिकारी होता है । आज साथ में लेफ्टिनेंट कूपर था । उसी ने मुझे यह ख़बर दी है ।’’ दत्त ने जवाब दिया ।
‘‘लेफ्टिनेंट कूपर ने बताया ?’’ जिसे सज़ा मिलने वाली है उसी को यह गोपनीय सूचना एक अधिकारी द्वारा दी जाए इस पर गुरु और जी. सिंह को विश्वास नहीं हो रहा था ।
‘‘यह सच है, मुझे कूपर ने ही बताया है ।’’ दत्त ने जोर देकर कहा ।
‘‘सँभल के रहना । कूपर अंग्रेज़ों का पक्का चमचा है’’, गुरु ने उसे सावधान किया ।
‘‘मुझे मालूम है। मैं उसे अच्छी तरह पहचानता हूँ । पक्का हरामी है ।’’ दत्त कह रहा था, ‘‘इंग्लैंड में मजदूर पक्ष की सरकार बन गई है । कई लोगों का ऐसा अनुमान है कि स्वतन्त्रता का सूरज अब निकलने ही वाला है । कूपर जैसे लोग इस पर विश्वास करने लगे हैं । ये लोग यह दिखाने का एक भी मौका नहीं छोड़ते कि वे स्वतन्त्रता प्रेमी हैं । इसीलिए कूपर ने मुझे यह जानकारी दी ।’’ दत्त ने स्पष्ट किया।
‘‘स्वतन्त्रता मिलने के बाद अंग्रेज़ों के जूते चाटने वाले इन अधिकारियों को घर बिठा देना चाहिए । आज अपने प्रमोशन की ख़ातिर ये अंग्रेज़ों के प्रति वफादारी दिखा रहे हैं और इसके लिए अपने देश–बन्धुओं पर अत्याचार कर रहे हैं,’’ गुरु का गुस्सा उसके हरेक शब्द से प्रकट हो रहा था ।
दत्त नौसेना से मुक्त होने वाला है इस बात की खुशी दोनों के चेहरों पर दिखाई दे रही थी; मगर हम एक बढ़िया कार्यक्षमता वाले मित्र को खो रहे हैं यह बात उन्हें दुखी भी कर रही थी ।
‘तलवार’ से भेजे गए सन्देशों को मुम्बई से बाहर के जहाजों और ‘बेसेस’ से जवाब प्राप्त हो रहे थे । ‘तलवार’ के सैनिकों द्वारा की गई पहल की सभी ने तारीफ़ की थी । कुछ लोगों ने खान, मदन, गुरु का अनुसरण करते हुए अपने–अपने कैप्टेन्स के विरुद्ध रिक्वेस्ट्स–अर्जियाँ दे डालीं । कोचीन के ‘वेंदूरथी’ और विशाखपट्टनम के ‘सरकार्स’ की ‘बेस’ के सैनिकों ने तो यह सन्देश भेजा था कि ‘‘तुम लोग विद्रोह करो; हम तुम्हारे साथ हैं । कोचीन, विशाखापट्टनम पर हम कब्जा कर लेंगे, मुम्बई पर तुम कब्जा करो!’’ विशाखापट्टनम के सैनिकों ने सूचित किया, ‘‘हम मद्रास की ‘अडयार’ बेस और कलकत्ता के ‘हुगली’ के सम्पर्क में हैं ।’’ विभिन्न ‘बेसेस’ और जहाज़ों से आए हुए सन्देश काफ़ी उत्साहवर्धक थे ।
शनिवार को सुबह आठ बजे कैप्टेन्स रिक्वेस्ट्स एण्ड डिफाल्टर्स फॉलिन किये गए । आज कमाण्डर किंग गम्भीर नज़र आ रहा था । उसके मन में हलचल मची हुई थी । सामने पड़ी हुई आठ रिक्वेस्ट्स पर क्या निर्णय लिया जाए इस पर वह कल रात से विचार कर रहा था ।
‘अगर सारी रिक्वेस्ट्स खारिज कर दूँ तो–––’ वह विचार कर रहा था ।
‘यह बेवकूफी होगी !’ उसका दूसरा मन उसे चेतावनी दे रहा था, ‘इससे सैनिक और भी बेचैन हो जाएँगे और विरोध बढ़ेगा । शायद वे विद्रोह भी कर दें । यदि ऐसा हुआ तो… परिणाम गम्भीर होंगे ।’
उसे रॉटरे द्वारा दी गई चेतावनी की याद आई ।
‘यदि सारी रिक्वेस्ट्स पेंडिंग रखूँ तो ?’
‘तो क्या ? परिस्थिति में कोई खास अन्तर नहीं आएगा ।’ सवाल पूछने वाले एक मन को दूसरा मन जवाब दे रहा था ।
‘फिर करूँ क्या ?’ दोनों मनों के सामने था प्रश्न ।
‘गेंद उन्हीं के पाले में भेजनी होगी ।’ दोनों मनों ने एक ही सलाह दी ।
‘मगर कैसे ?’ इसी के बारे में वह सुबह से विचार कर रहा था ।
‘पीसने बैठो तो भजन सूझता है । गले से आवाज निकलती है ।’
वे आठ लोग सामने आए कि रास्ता दिखाई देगा! उसने अपने आप से कहा । पहली दो–चार छोटी–मोटी रिक्वेस्ट्स निपट गईंऔर मास्टर एट आर्म्स ने आठों को एक साथ अन्दर बुलाया । किंग यही चाहता था ।
सामने खड़े आठ लोगों पर उसने पैनी नजर डाली और कठोरता से पूछा, ‘‘तुम सबकी शिकायत मेरे खिलाफ है और एक ही है – मैंने अपशब्दों का प्रयोग किया, तुम्हारी माँ–बहनों को गालियाँ दीं ।’’ किंग के भीतर छिपा सियार बोल रहा था ।
मदन, गुरु, दास और खान सतर्क हो गए ।
‘‘मेरी शिकायत अलग, स्वतन्त्र है, और वह सिर्फ मुझ तक ही सीमित है,’’ मदन ने मँजा हुआ जवाब दिया । औरों ने भी उसी का अनुसरण किया ।
शिकार घेरे में नहीं आ रहा है यह देखकर किंग ने आपा खो दिया । वह चिढ़कर चीखा, ”you fools, don’t teach your grandfather how to… तुम्हारी शिकायत किसके खिलाफ है, जानते हो ? मेरे खिलाफ, कमाण्डर किंग के खिलाफ, Captain of the HMIS ‘तलवार’ के खिलाफ । तुम पैदा भी नहीं हुए थे तबसे मैं नौसेना का पानी पी रहा हूँ । मैंने कइयों को समय–समय पर पानी पिलाया है। तुम क्या चीज हो ? देख लो, तुम्हें एक ही दिन में सीधा करता हूँ या नहीं ।’’
किंग की इन शेखियों से गुरु, मदन को हँसी आ गई ।
‘‘तुम अपने आप को समझते क्या हो ?’’ किंग ने पूछा, ‘‘ये रॉयल इण्डियन नेवी है । किसी स्थानीय राजा की फटीचर फौज नहीं। यहाँ कानून चलता है तो सिर्फ Her majesty Queen of England का । चूँकि यह तुम्हारी पहली ही ग़लती है, इसलिए तुम्हें एक मौका देता हूँ,’’ उसने गहरी साँस छोड़ी । उसका गुलाबी रंग लाल हो गया था । रिक्वेस्ट करने वालों के चेहरों पर निडरता थी । किंग को क्रोधित देखकर उन्हें अच्छा लग रहा था ।
किंग पलभर को रुका । मन ही मन उसने कुछ सोचा, उसकी काइयाँ आँखें एक विचार से चमकने लगीं । अपनी आवाज में अधिकाधिक मिठास लाते हुए उसने उनके सामने एक पर्याय रखा ।
‘‘तुम लोग या तो अपनी रिक्वेस्ट्स वापस लो, या फिर जो कुछ भी तुमने मेरे बारे में कहा है उसे सिद्ध करो । वरना मैं तुम्हें कमांडिंग ऑफिसर को बदनाम करने के आरोप में सजा दूँगा ।’’
कमाण्डर किंग वस्तुस्थिति को समझ ही नहीं पाया था । स्नो ने उसे सतर्क करने की कोशिश तो की थी मगर वह सावधान हुआ ही नहीं था । बेस के गोरे अधिकारियों से हिन्दुस्तानी सैनिक डर के रहते हैं, इसलिए वह यह समझता था कि वे अंग्रेज़ी हुकूमत के साथ हैं । ‘तलवार’ के तीन हजार सैनिकों में से कोई भी इन मुट्ठीभर आन्दोलनकारियों का साथ नहीं देगा ऐसा उसे विश्वास था ।
‘‘मैं तुम्हें दो दिन की मोहलत देता हूँ । सोमवार तक या तो तुम अपनी रिक्वेस्ट्स वापस लो और मुझसे माफी माँगो, या फिर सुबूत पेश करो ।’’ उसने उनके सामने पर्याय रखे । अब गेंद सैनिकों के पाले में थी ।
‘‘किंग पक्का है । वह हमें उलझाने की कोशिश कर रहा है ।’’ मदन ने कहा ।
‘‘हम गवाह कहाँ से लाएँगे ?’’ दास को चिन्ता हो रही थी ।
हम एक–दूसरे के लिए तो गवाह बन नहीं सकते । अगर ऐसा करेंगे तो यह सिद्ध हो जाएगा कि हमारी रिक्वेस्ट्स एक षड्यन्त्र का हिस्सा है।’’ गुरु का डर बोल रहा था ।
‘‘अब, अगर ऐसे गवाहों को लाना है जिन्होंने रिक्वेस्ट्स नहीं दी है; तो हमारी ओर से गवाही देने के लिए सुमंगल आएगा, सुजान आएगा और कुछ और लोग भी आगे आएँगे ।’’ पाण्डे ने उपाय बताया ।
‘‘मतलब, हम वही करने जा रहे हैं जो किंग चाहता है ।’’ खान ने विरोध किया ।
‘‘क्या मतलब ?’’ पाण्डे ने पूछा ।
‘‘यदि हम गवाह लाए तो हमारे सारे पत्ते खुल जाएँगे । हमारे साथी कौन हैं, इसका किंग को पता चल जाएगा और वह हमें खत्म करने की कोशिश करेगा ।’’ खान ने स्पष्ट किया ।
‘‘इसके अलावा यह भी नहीं कहा जा सकता कि हमारे द्वारा पेश किए गए सुबूतों को वह मान ही लेगा । यहाँ तो आरोपी ही न्यायाधीश है ।’’ गुरु ने कहा ।
‘‘ठीक है । और दो दिन हैं हमारे पास । कोई न कोई रास्ता ज़रूर निकलेगा ।’’ खान ने आशा प्रकट की ।
जब कमाण्डर किंग अपने दफ्तर में पहुँचा तो बारह बज चुके थे । उसने अपनी डायरी पर नज़र दौड़ाई तो पाया कि अभी बहुत सारे काम निपटाने हैं । ‘इन आठ रिक्वेस्ट्स ने काफी समय खा लिया,’ वह अपने आप से बुदबुदाया । मगर एक बात अच्छी हुई । इनका फैसला हो गया । अब कुछ कामों को आगे धकेलना ही पड़ेगा । उसने फिर से डायरी में मुँह घुसाया और देखने लगा कि कम महत्त्वपूर्ण काम कौन–से हैं । कॉक्सन बशीर ने उसके सामने चाय का कप रखा । गर्म–गर्म चाय गले से उतरते ही उसे ताज़गी का अनुभव हुआ । दिमाग का तनाव कुछ कम हुआ, उसने पाइप सुलगाया । कड़क तम्बाखू के चार कश सीने में भर लेने के बाद उसकी थकावट और निराशा भी दूर भाग गए ।
”May I come in, sir?” सेक्रेटरी ब्रिटो दरवाजे पर खड़ा था ।
”Yes, Lt. Britto, anything important?” उसने भीतर आने वाले ब्रिटो से पूछा ।
‘‘सर, दत्त की सज़ा से सम्बन्धित कल आया हुआ पत्र आपने देखा ही है । आज इन्क्वायरी कमेटी ने अपनी रिपोर्ट दी है । उसमें उन्होंने स्पष्ट रूप से लिखा है कि दत्त को फौरन सिविल पुलिस के हाथों में दे दिया जाए, सेवामुक्त कर दिया जाए । उन्होंने उसे छह महीनों के कठोर कारावास की सजा सुनाई है ।’’
ब्रिटो ने जानकारी दी ।
”Oh, hell with them! अरे, अभी बजे हैं साढ़े बारह । सिर्फ आधे घण्टे में उसके लिए आवश्यक कागज़ातों के ढेर कैसे टाइप हो सकते हैं ? और आज उसे नौसेना से कैसे निकाल सकते हैं ?’’ ब्रिटो सुन सके इस अन्दाज़ में वह पुटपुटाया ।
‘‘सर, इन्क्वायरी कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में आपके द्वारा समय–समय पर लिये गए निर्णयों की प्रशंसा तो की ही है, साथ ही यह भी कहा है कि वे निर्णय अत्यन्त योग्य थे ।’’ ब्रिटो के चेहरे की प्रशंसा का भाव उसके शब्दों में झलक रहा था ।
‘मतलब, मैं सही रास्ते पर हूँ,’ किंग ने सोचा ।
‘‘लेफ्टिनेंट ब्रिटो, एडमिरल कोलिन्स को इन Compliments के लिए आभार दर्शाते हुए पत्र भेजो और उसकी एक प्रति पार्कर को भी भेजो।’’ किंग ने ब्रिटो को सूचना दी ।
‘क्या तुम्हें राजनीतिक कैदियों को दी जाने वाली सुविधाएँ चाहिए ? ’ ब्रिटो के बाहर जाते ही किंग के मन में दत्त का ख़याल आया ।
‘कागज़ात पूरे करने तक सोमवार की दोपहर हो जाएगी । मतलब अभी पूरे डेढ़ दिन दत्त मेरे कब्ज़े में है । इन डेढ़ दिनों में यदि उसके साथियों को पकड़ सकूँ तो ?’
उसके मन का सियार जाग उठा । किंग ने एक चाल चलने की सोची । वह बाहर निकला और सीधा सेल की दिशा में चलने लगा । कमाण्डर किंग के पैरों की आहट सुनते ही सन्तरी सावधान हो गया । सैल्यूट को स्वीकार करते हुए किंग सेल के लोहे के दरवाजे के पास गया ।
दत्त शान्ति से बैठा कुछ पढ़ रहा था । दत्त को इतना शान्त देखकर किंग को अचरज हुआ । ‘इतना सब कुछ हो जाने के बाद भी यह इतना शान्त कैसे है ?’ किंग ने अपने आप से पूछा । सेल का दरवाजा खुला ।
‘‘गुड नून’’ दत्त ने कहा ।
किंग ने हँसकर उसका अभिवादन स्वीकार किया ।
‘‘तुम सोमवार को सेवामुक्त हो जाओगे । क्या तुम्हें अपनी सज़ा के बारे में पता है ?’’ किंग ने पूछा ।
दत्त ने इनकार करते हुए गर्दन हिला दी । चेहरे पर भोलेपन के भाव थे ।
‘‘तुम्हारे हाथ से हुई ग़लतियाँ अनजाने में हुई हैं, ऐसी रिपोर्ट भेजी थी मैंने । उस रिपोर्ट का और तुम्हारी उम्र का ख़याल करते हुए कमाण्डर इन चीफ ने दया दिखाते हुए तुम्हें डिमोट करके नौसेना से मुक्त करने की सजा सुनाई है ।’’ आधी–अधूरी जानकारी देते हुए किंग दत्त का चेहरा देखे जा रहा था ।
‘‘ठीक है । मतलब तुम मुझे सोमवार को सेवामुक्त करोगे!’’ दत्त निर्विकार चेहरे से बोला, ‘‘मतलब और दो दिन मुझे सेल में गुजारने पड़ेंगे । इसके बाद मैं आज़ाद हो जाऊँगा, अपनी मर्ज़ी से काम करने के लिए ।’’
‘हरामखोर, सोमवार को जब गिट्टी फ़ोड़ने के लिए जाएगा, तो पता चलेगा कि आज़ादी कैसी है! यहीं सड़ तू और दो दिन ।‘ दत्त की स्थितप्रज्ञता को गालियाँ देते हुए किंग मन ही मन पुटपुटाया । दत्त और दो दिन सेल में रहने वाला है इस ख़याल से अचानक उसके भीतर के सियार ने सिर बाहर निकाला ।
‘‘अगर तुम चाहो तो बैरेक में जाकर रह सकते हो, मुझे कोई आपत्ति नहीं । मगर तुम्हें ‘बेस’ छोड़कर जाने की इजाजत नहीं होगी । और हर चार घण्टे बाद ऑफिसर ऑफ दि डे को रिपोर्ट करना होगा, बिलकुल रात में भी ।’’ किंग ने सोचा कि यह मानेगा नहीं । ‘‘अगर तुम्हारी इच्छा न हो तो… ।’’
‘अन्धा माँगे एक आँख और… मैं तो सिर्फ अपने दोस्तों से मिलना चाहता था, मगर यह तो…’ दत्त ने मन में विचार किया । ‘‘नहीं, यह बात नहीं । मुझे यह सब मंजूर है । असल में यहाँ अकेले पड़े–पड़े मैं उकता गया हूँ । वहाँ कम से कम मेरे दोस्त तो मिलेंगे ।’’ और दत्त ने अपना सामान समेटना शुरू किया ।
किंग मन ही मन बहुत खुश हो गया । एक बार तो उसे लगा था कि यदि इसने इनकार कर दिया तो इसके साथियों को पकड़ने की मेरी चाल पूरी नहीं होगी ।
‘‘मैं ऑफिसर ऑफ दि डे को इस सम्बन्ध में आदेश देता हूँ । दो सन्तरी तुम्हें बैरेक में छोड़ आएँगे । वहाँ यदि तुम्हें कोई तंग करे तो तुम ऑफिसर ऑफ दि डे को रिपोर्ट करना और सेल में वापस आ जाना ।’’ किंग ने बाहर निकलते हुए कहा ।
दत्त हँसा और मन ही मन पुटपुटाया, ‘बेवकूफों के नन्दनवन में घूम रहा है, साला! बैरेक में मुझे तो सुरक्षा की ज़रूरत नहीं है; मगर मेरे बैरेक में जाने के बाद कहीं तुझे ही सुरक्षा की ज़रूरत न पड़ जाए!’’
Courtsey: storymirror.com

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