लेखक: राजगुरू द. आगरकर
अनुवाद: आ. चारुमति रामदास
शनिवार को दस बजे की Ex.O. की रिक्वेस्ट्स और डिफॉल्टर्स फॉलिन हो चुके थे । ठीक सवा दस बजे लेफ्ट. कमाण्डर स्नो खट्–खट् जूते बजाता रोब से आया ।
लेफ्ट. कमाण्डर स्नो रॉयल इंडियन नेवी का एक समझदार अधिकारी था, गोरा–चिट्टा, दुबला–पतला । परिस्थिति का आकलन करके व्यूह रचना करने में स्नो माहिर था । आज भी वह मन ही मन कुछ हिसाब करके ही आया था ।
स्नो ने आठ लोगों की रिक्वेस्ट्स पर नजर डाली । डिवीजन ऑफिसर स. लेफ्ट. जेम्स के साथ फुसफुसाकर कुछ चर्चा की और आठों को एक साथ अपने सामने बुलाया ।
‘‘हूँ, तो कमाण्डर किंग ने तुम्हें गालियाँ दीं । बुरी भाषा का इस्तेमाल किया ।’’ उसने पूछा ।
उन आठों ने हाँ कहते हुए सिर हिला दिये ।
‘‘किस परिस्थिति में, बैरेक के बाहर महिला–सैनिकों को कोई छेड़ रहा है, यह देखकर ही ना ?’’ स्नो उन्हें लपेटने की कोशिश कर रहा था ।
‘‘बैरेक से बाहर क्या हुआ यह मुझे मालूम नहीं, मगर उन्होंने बैरेक के भीतर आकर ओछी गालियाँ दीं ।’’ मदन ने कहा ।
‘‘क्या उन्होंने तुम्हारा नाम लेकर गालियाँ दीं ?’’ स्नो ने पूछा ।
‘‘मैं सामने था । फिर बगैर नाम लिये ही सही, यदि गालियाँ दीं थीं तो वह दीवार को तो नहीं न दी थीं ।’’ गुरु ने जवाब दिया ।
‘क्या तुम सबका यही जवाब है ?’’ स्नो ने शिकारी बाज की तरह सब पर नजर डाली । उस नजर ने सबको सतर्क कर दिया ।
‘‘किंग मेरी ओर देख रहा था ।’’ मदन बोला ।
‘‘किंग मुझ पर दौड़ा,’’ खान ने जोड़ा ।
स्नो समझ गया, शिकार हाथ में आने वाला नहीं । उसने दूसरा सवाल पूछा, ‘‘कमाण्डर किंग अंग्रेज़ अधिकारी है, इसीलिए तुम यह आरोप लगा रहे हो ना ?’’
‘‘किंग हिन्दुस्तानी अधिकारी भी होता – न केवल जन्म से, बल्कि खून से भी – तो भी हम यही आरोप लगाकर न्याय माँगते!’’ मदन ने कहा।
‘‘हमारे स्वाभिमान को ठेस पहुँचाने वाले की हम शिकायत करते ही करते, उसकी जाति का, धर्म का और रंग का विचार न करते हुए।’’ गुरु ने ज़ोर देकर कहा ।
‘‘ठीक है। तुम्हारे स्वाभिमान को ठेस पहुँची है इसलिए तुमने यह शिकायत की है । ठीक है । मेरा एक सुझाव है कि इस तरह से अलग–अलग रिक्वेस्ट देने के बदले तुम सब मिलकर एक ही रिक्वेस्ट दो, जिससे हमें निर्णय लेने में आसानी होगी ।’’ स्नो ने बड़प्पन से कहा । स्नो के सुझाव में जो खतरा छिपा था वह सबकी समझ में आ गया ।
‘‘सर, हमारी रिक्वेस्ट्स अलग–अलग हैं, और मेरी आपसे दरख्वास्त है कि आप हर अर्जी पर अलग–अलग विचार करें, ‘’ मदन ने विनती की ।
नाक पर खिसके चश्मे को ठीक किये बिना ही उसने आठों पर एक नज़र डाली और अपने आप से बुदबुदाया, ‘किंग के खिलाफ ये अर्जियाँ -एक षड्यन्त्र हो सकता है । सेना में सुलगते असन्तोष को देखते हुए इन अर्ज़ियों पर लिये गए निर्णय ईंधन का काम करेंगे…’ अर्ज़ियों पर टिप्पणी लिखते हुए पलभर को रुका; मगर फिर एक निश्चय से उसने टिप्पणी लिख दी । ‘‘कैप्टेन की ओर निर्णय के लिए प्रेषित’’ और स्नो ने राहत की साँस ली ।
”May I come in, sir?” किंग ने स्नो की आवाज़ पहचानी, अख़बार से नज़र हटाए बिना उसने स्नो को भीतर बुलाया, ”good morning, Snow! Come on, have a seat.” और वह फिर से अखबार पढ़ने में मगन हो गया ।
”Sir, मुझे आपसे एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण विषय पर बात करनी है!’’ स्नो की आवाज में गुस्से के पुट को किंग ने महसूस किया । अखबार को समेटते हुए वह बोला, ‘‘हुँ, बोलो!’’
किंग द्वारा दिखाई गई बेरुखी से स्नो चिढ़ गया था । मगर अपने क्रोध पर काबू करते हुए स्नो ने सीधे विषय पर आते हुए कहा, ‘‘सर, आज मेरे पास आठ रिक्वेस्ट्स आई थीं!’’
‘‘हर हफ्ते तुम्हारे पास रिक्वेस्ट्स आती ही हैं, और तुम्हें ही उन पर निर्णय लेने का अधिकार है ।’’ किंग ने हँसते हुए कहा और अखबार एक ओर रख दिया ।
‘‘सर, प्लीज़, मेरी बात को मज़ाक में न टालिए । आज की रिक्वेस्ट्स हमेशा की रूटीन रिक्वेस्ट्स की तरह नहीं थी । वे आपके ख़िलाफ थीं । 8 तारीख को सुबह कम्युनिकेशन सेंटर की बैरेक में आपने जिस भाषा का इस्तेमाल किया था उसके बारे में थी ।’’ स्नो ने शान्ति से कहा ।
‘‘क्या कहा ? शिकायतें, और मेरे खिलाफ ?’’ किंग गुस्सा हो गया । ‘‘ये बास्टर्ड्स इंडियन्स अपने आप को समझते क्या हैं ?’’ और उसने गालियों की बौछार शुरू कर दी ।
”Sir, we should not lose our temper.” स्नो किंग को शान्त करने का प्रयत्न कर रहा था । ‘‘मेरा ख़याल है कि हमें ठण्डे दिमाग से इस पर विचार करना चाहिए ।’’
‘‘ठीक है । सारी रिक्वेस्ट्स मेरे पास भेजो । मैं देख लूँगा, सालों को । By God, I tell you, I will…them.” किंग की आवाज़ ऊँची हो गई थी ।
‘‘मैंने रिक्वेस्ट्स फॉरवर्ड कर दी है । मेरा ख़याल है कि उन पर निर्णय शीघ्र ही लिया जाए । इसके लिए हम ख़ास ‘Requests and Defaulters’ के तहत कार्रवाई करें । यह सब पहले सूझ–बूझ से मिटाएँ । परले सिरे की भूमिका न अपनाएँ । इसके परिणामों पर ध्यान दें, सर’’ स्नो ने किंग को सावधान किया ।
‘‘नहीं । मैं इसके लिए विशेष कुछ भी नहीं करूँगा । जो भी होगा रूटीन के अनुसार ही होगा । रूटीन से बाहर जाकर मैं उन्हें बेकार का महत्त्व नहीं दूँगा । किंग ने स्पष्ट किया ।
‘‘सर, पूरे देश का और सेना का वातावरण बदल रहा है । सुभाषचन्द्र के कर्तृत्व ने और आई.एन.ए. ने उनके मन में देशप्रेम की भावना को और उनके स्वाभिमान को जगा दिया है । ये सुलगते हुए सैनिक इकट्ठा हो रहे हैं ।’’ स्नो परिस्थिति को स्पष्ट कर रहा था ।
”Might be elsewhere but not on board Talwar,” किंग ने घमण्ड से कहा उसके नियन्त्रण वाले जहाज़ पर ऐसा कुछ नहीं होगा यह झूठा आत्मविश्वास उसे भटका रहा था ।
‘‘सर, तलवार पर भी नारे…’’ स्नो ने वास्तविकता से परिचित कराया ।
‘‘मेरे समय में यदि नारे लिखे भी गए हों तो आरोपी पकड़ा जा चुका है यह मत भूलो ।’’ स्नो के वास्तविकता को सामने लाने से किंग चिढ़ गया था ।
उसकी आवाज बुलन्द हो गई थी । ‘‘और परसों, ट्रान्सपोर्ट सेन्टर में जो कुछ भी हुआ उससे सम्बन्धित आरोपी भी पकड़े जाएँगे और उन्हें सजा भी मिलेगी ।’’
स्नो समझ गया कि किंग को गुस्सा आ गया है । क्रोधित किंग कुछ भी सुनने, समझने को तैयार नहीं होता यह बात वह अच्छी तरह जानता था । उसने कैप पहन ली और उठकर सीधे दरवाज़े की ओर गया । दरवाज़े पर वह रुका और किंग से बोला, ‘‘सर, ऐसा न हो कि मैंने आपको आगाह नहीं किया, इसीलिए बताने चला आया । किसी एक आर.के. को नौसेना से निकाल देना या किसी एक दत्त को गिरफ्तार करना पर्याप्त नहीं है । सर, रात ख़तरे की है!’’
”Thank you very much,” किंग ने धूर्तता से कहा । ‘‘मगर एक बात ध्यान में रखो, कैप्टेन्स रिक्वेस्ट्स एण्ड डिफॉल्टर्स रूटीन के अनुसार ही सुलझाई जाएँगी ।’’
स्नो तिलमिलाता हुआ किंग के दफ्तर से बाहर निकला, ‘मरने दो साले को। ये बुरा फँसेगा, फँसने दो साले को!’’
‘‘हमारी रिक्वेस्ट्स तो आगे चली गई है । अब देखें कि आगे क्या होता है!’’ मदन के चेहरे पर समाधान था । ले. कमाण्डर स्नो ने उनकी रिक्वेस्ट्स कमाण्डर किंग को भेज दी हैं, इस बात का पता चलते ही उन्हें ऐसा लगा मानो आधी लड़ाई जीत ली हो ।
‘‘तुम लोग शायद यह सोच रहे हो कि हमने आधी लड़ाई जीत ली है, मगर असल में तो अब लड़ाई की शुरुआत हुई है!’’ खान उनको जमीन पर लाने की कोशिश कर रहा था । ‘‘किंग शायद हमारी रिक्वेस्ट्स पर ध्यान ही न दे । शायद हम पर कोई आरोप लगाकर हमें सज़ा दे दे, उलटे–सीधे सवाल पूछे; इसलिए जब तक हमें उसके सामने न खड़ा किया जाए, तब तक यह न समझना चाहिए कि हमने कुछ हासिल किया है ।‘’
‘‘हमें सोमवार को किंग के सामने पेश नहीं करेंगे,’’ गुरु ख़बर लाया ।
‘‘ऐसा किस आधार पर कह रहे हो ?’’ मदन ने पूछा ।
‘‘ये देखो, सोमवार की डेली ऑर्डर, कैप्टेन्स रिक्वेस्ट्स में हमारे नम्बर नहीं हैं ।’’ गुरु ने स्पष्ट किया ।
‘‘इसका मतलब, किंग हमारी रिक्वेस्ट्स को, हमारी भावनाओं को और हमारे स्वाभिमान को कौड़ी के मौल तौलता है । उसकी नजर में इसका कोई महत्त्व नहीं है । मैं उस समय तुम लोगों से यही कह रहा था ।’’ खान ने कहा ।
‘‘फिर अब क्या करें ?’’ दास ने पूछा ।
‘‘अब हम क्या कर सकते हैं! गेंद उनके पाले में है ।’’ खान ने कहा ।
‘‘सोमवार को हमें किंग के सामने पेश नहीं किया जाएगा, इसका मतलब है कि शुक्रवार तक का समय हमारे पास है, और इतने समय में हम काफी कुछ कर सकते हैं ।’’ मदन के चेहरे पर मुस्कराहट थी ।
‘‘ठीक कहते हो । अगले सात दिनों में और चौदह लोग हमारी ही तरह रिक्वेस्ट्स दें । हमारी रिक्वेस्ट्स तो जेम्स और स्नो ने आगे बढ़ा दी हैं, इसका मतलब, इन चौदह रिक्वेस्ट्स को भी उन्हें आगे भेजना पड़ेगा । इससे किंग के ऊपर दबाव बढ़ेगा ।’’ खान ने व्यूह रचना स्पष्ट की ।
‘‘इतना ही नहीं, बल्कि इस समयावधि में हम मुम्बई और मुम्बई के बाहर के नौसेना के जहाज़ों और बेस के सैनिकों से सम्पर्क स्थापित करके उन्हें इकट्ठा कर सकेंगे । मुम्बई के जहाज़ों पर भी सैनिकों के आत्मसम्मान को ठेस पहुँचाने वाली और उनके साथ सौतेला बर्ताव करने की घटनाएँ हुई हैं । हमें ऐसे सैनिकों से मिलकर उन्हें एकजुट होने की अपील करनी चाहिए ।’’ गुरु ने सुझाव दिया ।
गुरु के इस सुझाव को सबने मान लिया और यह तय किया कि उनमें से दो लोग बैरेक में रुकेंगे और बाकी लोग दो–दो के गुटों में एक–एक जहाज़ पर जाकर सैनिकों से सम्पर्क स्थापित करेंगे ।
‘‘अभी कुछ ही देर पहले ‘पंजाब’ का रणधावा मिला था । कल ‘पंजाब’ में इलेक्ट्रिशियन दबिर ने उन्हें दिए जाने वाले खराब भोजन के बारे में मेस में ही ऑफिसर ऑफ दि डे से शिकायत की । शिकायत दूर करने के बदले ऑफिसर दबिर को ही डाँटने लगा, इस पर भूखे दबिर का दिमाग घूम गया और वह ऑफिसर पर दौड़ पड़ा । उसे गिरफ्तार करके सेल में डाल दिया गया है । मेरा ख़याल है कि हमें वहाँ के सैनिकों से मिलकर समर्थन देना चाहिए,’’ गुरु ने अपनी राय दी ।
‘‘अरे, हम इन सबसे मिलने के बारे में सोच रहे हैं । क्यों ना शेरसिंह से भी मिल लें ?’’ दास ने सुझाव दिया ।
‘‘वे मुम्बई में नहीं हैं ।’’ खान ने जानकारी दी ।
जब से मदन, खान, गुरु, दास वगैरह ने फ्लैग ऑफिसर, बॉम्बे से मिलने के बारे में अर्जियाँ दी थीं, तब से कम्युनिकेशन बैरेक्स के भीतर का वातावरण ही बदल गया था । सैनिकों के मन का डर भाग गया था । वे समझ गए थे कि वे गुलाम नहीं हैं, और अन्याय का विरोध करना उनका अधिकार है । आज़ाद हिन्दुस्तानी ऐसा कर रहे हैं इसलिए न केवल मन में उनके प्रति तारीफ की भावना थी, बल्कि उनका साथ देने की भी मन ही मन तैयारी हो चुकी थी । हाँ, बोस जैसे एक–दो व्यक्ति इसका अपवाद थे ।
courtesy: storymirror.com

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