लेखक: धीराविट पी. नागत्थार्न
अनुवाद: आ. चारुमति रामदास
*Littore quot conchae tot sunt in amore Dolores (Latin): दुनिया में गम इतने हैं, जितनी समुद्र तट पर सींपियाँ – Ovid 43 BC – AD C.17
बारहवाँ दिन
जनवरी २२,१९८२
हुर्रे ! दुनिया का एक और विशेष दिन हैः एकता दिवस। वाशिंग्टन, D.C., जनवरी २१ प्रेसिडेन्ट रीगन ने कल घोषणा की कि ३० जनवरी अमेरिका में ‘‘एकता दिवस’’ के रूप में मनाया जाएगा, निलम्बित पोलिश ट्रेड यूनियन के समर्थन में, रिपोर्टः ए०एफ०पी०।
‘‘एकता’’, उन्होंने कहा, ‘‘वास्तविक जगत में उस संघर्ष का प्रतीक है जब तथाकाथिन ‘‘मजदूर’’ मौलिक मानवाधिकारों और आर्थिक अधिकारों के समर्थन में खड़े हुए थे और उन्हें सन् १९८० में ग्दान्सक में विजय मिली थी। ये हैं – काम करने का अधिकार और अपने परिश्रम का फल पाने का अधिकार; एकत्रित होने का अधिकार; हड़ताल करने का अधिकार; और विचारों की स्वतन्त्रता का अधिकार’’ (दि स्टेट्समेन)
11.30 से 12.30 बजे तक लिंग्विस्टिक्स डिपार्टमेन्ट में एक सेमिनार था। रॉबर्ट डी०किंग, यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास के प्रसिध्द ऐतिहासिक-भाषविद् ने ‘‘सिंटेक्टिक चेंज (पदविन्यास-परिवर्तन) पर भाषण दिया। मैं सेमिनार में जाना चाहता था, मगर ऐन मौके पर मैंने न जाने का निश्चय कर लिया। दिल ही नहीं हो रहा था सेमिनार में जाने का। मुझे सबके सामने अपना तमाशा बनाना अच्छा नहीं लगता, इसलिये मैंने इस मौके का लाभ नहीं उठाया। मुझे लगता है कि मैं एक झूठे-स्वर्ग में रह रहा हूँ। सेमिनार में जाने के बदले मैं सोम्मार्ट के साथ किताबों की दुकान में गया, एक पत्थर-दिल को भूल जाने के लिये, जिसके लिये दिल में थोड़ी उम्मीद लिये जी रहा हूँ।
हमने ड्रेगोना-चाइनीज़ रेस्तराँ में लंच लिया। वापसी में सोम्मार्ट की नजर अपनी गर्ल-फ्रेण्ड पर पड़ी जो दूसरे लड़कों के साथ बैठी थी। उसे बहुत बुरा लगा। वह सोम्मार्ट को देखकर मुस्कुराई, मगर वह इतना निराश हो गया था कि मुस्कुरा न सका। मेरे साथ होस्टेल वह इस तरह आया जैसे उस पर वज्राघात हो गया हो। मैंने उसे ‘शांत रहने’ की सलाह दी, और रास्ते भर उसे चिढा़ता रहा। मगर, वह आधा खुश और आधा दुखी था। उसे लग रहा था कि दुनिया उसके विरूद्ध जा रही है। ‘‘प्यार का ऐसा तोहफा़’’ जिससे आदमी को पीडा़ होती है, मुझे हैरत में नहीं डालता। आदमी अपने आप से हारने लगता है। बाहय परिस्थितियों को अपना शिकार करने देता है। कुसूर किसका है? किसे दोष देना चाहिए? जवाब देने का दुःसाहस मैं नहीं करुँगा, क्योंकि मैं खुद भी उसी कश्ती पर सवार हूँ। जीवन परिस्थितियों से अलग नहीं हो सकता। इन्सान को जीवन की कई प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है। खुशी,दुख, सफलता, असफलता इत्यादि। जीन पॉल सार्त्र ने एक बार कहा थाः ‘‘इन्सान अभिशप्त है मुक्त होने के लिये,’’ इसका सबूत ढूँढ़ने के लिये दूर जाने की जरूरत नहीं है।
जब आदमी अथाह दुख में डूब जाता है, तो उसके आँसुओं का सैलाब बन जाता है। ये सारे खयाल मैं आज की डायरी में इस लिये लिख रहा हूँ कि मेरे बेचैन दिमाग को कुछ सुकून मिल सके। जब से तुम गई हो, मैं अपने बेचैन दिमाग से संघर्ष कर रहा हूँ। पढा़ई नियमित रूप से नहीं कर पा रहा हूँ। अकसर अपना आपा खो बैठता हूँ। मैं वह सब करने की कोशिश तो करता हूँ, जो मुझे करना चाहिये, मगर अपने उद्धेश्य में सफल नहीं हो पाता। हे भगवान, मुझे शांति, शक्ति और सांत्वना दो!
आज रात को मैंने होस्टेल में खाना नहीं खाया। तुमसे ‘‘सम्पूर्ण जुदाई’’ ने मेरे दिमाग को निराशा के गर्त में धकेल दिया है। मैं ग्येवर हॉल गया म्यूएन की किताब वापस करने, मगर उसका कमरा बन्द था। फिर मैं बूम्मी के पास गया। म्यूएन की किताब उसके पास छोड़कर वापस होस्टेल आ गया।
आज डायरी अपनी इच्छा के विपरीत लिख रहा हूँ। ये कठोर, अपठनीय और व्यंग्यात्मक लग सकती है। मैं चाहूँगा कि तुम मुझे माफ कर दो।
अभी भी तुमसे प्यार करता हूँ।

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