लेखक: धीराविट पी. नागात्थार्न
अनुवाद: आ. चारुमति रामदास
*Blanditia non imperio fit dulcis Venus (Latin): प्यार में मिठास आती है लुभावनेपन से न कि हुकूमतशाही से – प्यूबिलियस साइरस F1. 1st Century BC
ग्यारहवाँ दिन
जनवरी २१,१९८२
धरती सूरज के चारों ओर घूमती है और अपनी अक्ष पर भी घूमती रहती है। पुल के नीचे से काफी पानी बह चुका है। वक्त हर चीज को बदल देता है, हर जिन्दगी को निगल जाता है। मैं नहीं जानता कि जिन्दगी कितनी उलझन भरी है। पिछली जुलाई में मैं पच्चीस साल का हो गया। जब मैंने अपनी पिछली जिन्दगी में झांक कर देखा तो वहाँ सिर्फ ‘‘एक शून्य’’ मिला। जिन्दगी की अकेली राह पर, मैं एक लड़की से प्यार कर बैठा। मगर अब उसने अपने माता-पिता की खातिर मुझे छोड दिया है। उम्मीद के बावजूद उम्मीद करता हूँ कि वह किसी दिन लौट आएगी। मैं उसका इंतजार कर रहा हूँ। अब तक उसका एक भी खत नहीं आया है। वह मुझे भूल गई होगी, हमारे रिश्ते को भूल गई होगी। क्या हमारा प्यार इतिहास में जमा हो गया है? ताज्जुब है, अब मुझे अहसास होने लगा कि अपने अपने दिलों की गहराईयों में हम सब अकेले हैं। अकेलापन हर इन्सान के लिये एक छुपे-शैतान की तरह है। हमें उसका सामना अकेले ही करना है। हाय, जिन्दगी!
अच्छा, अब, मैं वापस आज की डायरी पर आता हूँ और इस खयाल से छुटकारा पाने की कोशिश करता हूँ कि तुमने मुझे फिलहाल छोड़ दिया है या कभी नहीं छोड़ोगी।
सुबह, सब कुछ वैसा ही रहाः उठना, मॅुह-हाथ धोना नाश्ता करना, और, बस! 11.30 बजे मैं यूनिवर्सिटी की एकेडेमिक ब्रांच गया सवाद के लिये प्राविजनल सर्टिफिकेट लेने, जिसके लिये मैंने दस दिन पहले दरखास्त दी थी। काऊन्टर पर लिखा था ‘क्लोज्ड!’ मैंने इसकी ‘‘छोटी खिड़की’’ पर टक-टक की। एक आदमी ने उसे खोलकर पूछा कि मैं क्या चाहता हूँ। मैं मुस्कुराया और मैंने अत्यधिक नम्र होने की कोशिश की। मैंने उसे प्रोविजनल सर्टिफिकेट वाली रसीद दिखाई। उसे बड़ा गर्व महसूस हुआ, स्वयं को महत्वपूर्ण समझते हुए वह भी नरम पड़ गया। मैं उसकी खुशामद करने लगा। मुझे ऐसा लगा कि अगर किसी इंडियन से काम निकलवाना हो तो उसे हमेशा यह दिखाओ कि वह तुमसे श्रेष्ठ है। धन्यवाद, महात्मा गाँधी! उसने फौरन प्रोविजनल सर्टिफिकेट बना दिया। मैंने उसे बहुत बहुत धन्यवाद दिया और मैं काऊन्टर से चल पड़ा। कैम्पस में लोग भाग-दौड कर रहे थे।
कर्मचारियों की हड़ताल अभी भी जारी है। वाइस चान्सलर बिल्डिंग के पास वाला यूनिवर्सिटी गार्डन संघर्ष कर रहे कर्मचारियों से खचाखच भरा है। यूनियन के प्रेसिडेन्ट ने माईक पर कहा ‘‘कर्मचारी, जिन्दाबाद!’’ कर्मचारी छोटे-छोटे गुटों में बैठे थे। कुछ लोग मूँगफलियाँ फोड़ रहे थे, कुछ ताश खेल रहे थे, और कुछ अपने नेता का भड़काऊ भाषण ध्यान से सुन रहे थे। कुछ महिला कर्मचारी भी शामिल थी। वे अपने लीडर को सुनने के बजाय बुनाई कर रही थी। कितनी बेकार की हड़ताल है। बिल्कुल एकता नहीं है। मैंने गार्डन के चारों ओर घूम कर अपना अवलोकन खत्म किया और वापस होस्टल आ गया। मेरे निरीक्षण ने मुझे यह सुझाव दिया कि कर्मचारियों की हड़ताल का उद्देश्य हैः सुरक्षा की भावना, सामाजिक मान्यता और आर्थिक लाभ। वे कहाँ तक सफल होंगे? यह तो मैं तुम्हें नहीं बता सकता। मेरी नजर में, तो यह एक हर साल खेला जाने वाला ‘गेम’ है, जिसमें कोई पुरस्कार नहीं है, बेकार की मेहनत!
मैं लंच के लिये होस्टल वापस आया और 4.30 बजे तक कमरे में ही बन्द रहा। ओने ने बताया कि वह तुम्हारा नहाने का कोट लाकर देगी, और मैं ग्वेयर हॉल पर उससे कोट ले लूँ। मैं वहाँ निश्चित समय पर पहुँचा (5.00 बजे) कमरे में हॉमसन, ओन, पू और उसका बच्चा बातें कर रहे थे। मैंने ‘हैलो’ कहते हुए कोब (पू के बच्चे) का चुंबन लिया और ओने से कोट के बारे में पूछा। वह तो उसे लाना भूल गई थी! मुझे उसके साथ जाकर हॉस्टेल से कोट लेना पड़ा। मैंने उससे तुम्हारे पापा द्वारा तुम्हारे लिये भेजे गये खत के बारे में भी पूछा (ओने ने कल बताया था)। मुझे ऐसा करने के लिये (तुम्हारी इजाज़त के बिना) इस बात ने मजबूर किया कि मुझे तुम्हारे पापा की खैरियत की फिक्र है। माफ करना। एक बात और भी हैः मैं यह समझता हूँ कि अगर तुम्हारे पापा को कुछ हो गया, तो तुम मुझे खत नहीं लिखोगी। अब मैं निश्चिंत हूँ, क्योंकि मुझे मालूम है कि तुम्हारे पापा ठीक हो रहे हैं (उनके तुम्हारे लिये लिखे खत के मुताबिक)। पहली बार मैंने थाराटीकी लिखाई देखी। इतनी बढि़या है कि एक आठ साल का बच्चा ऐसे कर सकता है। मैं वाकई इस बात के लिये उनकी तारीफ करता हूँ।
मगर अब मुझे यह खयाल परेशान कर रहा है कि तुम्हारे पापा के काफी ठीक हो जाने के बाद भी तुम मुझे क्यों नहीं लिख रही हो। ऐसा महसूस होता है कि मेरा दिल रौंदा जा रहा है। यह खयाल मुझे पागल बना रहा है, मेरी जान। क्या तुम महसूस कर सकती हो? मुझे मालूम है कि तुम अपने पापा के और मेरे बीच में बंटी हुई हो। मैंने तुम्हारे पापा का खत पढा़। मैं पिता का प्यार, दुलार, चिन्ता और फिकर महसूस कर रहा हूँ जिसका काई मोल नहीं है।
पिता और पुत्री का संबंध इतना गहरा होता है कि उसे किसी भी तरह से तोडा नहीं जा सकता। तब मुझे महसूस होता है कि मैं तो कोई भी नहीं हूँ। यह सोचकर मैं काँप जाता हूँ कि अगर तुम्हारे पापा ने हमारे ‘‘जॉइन्ट एग्रीमेन्ट’’ को सम्मति न दी तो हमारा प्यार तो बरबाद हो जाएगा। जब वह घड़ी आएगी, तब मैं क्या करुँगा? यह सवाल वज्रपात की तरह दिमाग पर गिरा।
मैं, बेशक, तुम्हारी तारीफ ही करुँगा, अगर तुम अपने पापा को प्राथमिकता दो। ईमानदारी से कहूँ, तो मैं तुम्हारे और तुम्हारे पापा के लिये अपनी खुशी को भी ‘‘खत्म कर दॅूगा’’। मैं तुमसे वादा करता हूँ कि ‘‘हमारे’’ पापा हमारी हरकतों से आहत नहीं होंगे। आज ‘‘स्टेट्समेन’’ अखबार ने हमारे देश (थाईलैण्ड) के बारे में एक खबर प्रकाशित की है। यह छोटे कॉलम में है। खबर ऐसी हैः नसबन्दी मेराथॉन, बैंकोक, जन. 19। जन्म-नियन्त्रण प्रचारक मि० मिचाइ वीरावाइ दया ने कल बैंकोक की २००वीं वर्षगॉठ को इस वर्ष एक अनूठे प्रकार से मनाने की योजना की घोषणा की – एक नसबन्दी मेराथॉन का आयोजन करके, यह खबर ए०एफ०पी० ने दी है (कुछ अन्य अनावश्यक विवरण छोड़ रहा हूँ)।
यह खबर पढ़कर इस भयानक दुनिया से मुझे घृणा हो गई। यह धर्म के खिलाफ है! आर्थिक समस्याओं का बहाना देकर। ये सिर्फ नर-संहार का कार्यक्रम ही तो है। यह प्रदर्शित करती है वास्तविकता का सामना करने की मानव की असमर्थता, मानव की असफलता, मानव का अमानुषपन। आर्थिक संकट को हल करने में असमर्थ इन्सान मानव जाति को ही समाप्त करने चला है। अगर तुम मृत्य के पश्चात् की जिन्दगी में या ‘‘पुनर्जन्म’’ में विश्वास करती हो तो तुम इस घृणित योजना के प्रति मेरी असहमति और नफरत को समझ सकोगी। तुम्हारा पुनर्जन्म होगा कैसे यदि स्त्रियों और पुरूपों की नसबन्दी हो जाए तो?
अच्छे और बुरे कर्मों के परिणाम कहाँ हैं? इसकी सिर्फ ‘निहिलिज्म’ (निषेधवाद) – वास्तविकता के निषेध से ही तुलना की जा सकती है। मैं इसे सभ्य समाज के शैतान द्वारा निर्मित एक निषेधात्मक कदम समझता हूँ। मैं, इस कलंकित कदम का विरोध करने वालों में सबसे आगे रहूँगा। इस ईश्वर विरोधी योजना का धिक्कार हो।

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