******आना इस बार ज़रूर होली पर************

( Picture from internet)
सोचा करती थी मैं
कि जब हम एक संग होंगे
कितने सुन्दर तब होली के रंग होंगे
यूँ तो बरसाए हैं बहुतेरों ने
रंग हर होली पर
लेकिन कैसा कर दिया जादू तुमने दिल पर
कि मुझे अब और कोई रंग नहीं भाता
रंगे मेरे मन से तेरा ख्याल नहीं जाता
होली आ गई है फिर से
क्या तुम आओगे इस बार
बधाई देने के बहाने
विविध रंगों में रंगे
जाओगे भी नहीं पहचाने
पर उन रंगों में एक रंग
सबसे गहरा होगा
तुम्हारी आँखों में चमकता
तुम्हारे चेहरे पर दमकता
शायद कोई बिसरी हुई चोट की याद का
निशान सा बन के ठहरा होगा
उसी रंग में रंगी अब भी जीती हूँ मैं
स्मरण करती वह होली, अब भी
जब मैं थी तेरी, भोली
चाहे तुम्हारे लिए मैं कहानी कोई बीती हूँ मैं
कहने को तो सब कुछ है मेरे पास
मगर अधूरी है अब भी एक प्यास
जो बुझती नहीं, रीती हूँ मैं
कह नहीं सकती देव से
कि मेरे जीवन में किस बात की कमी है
और, देर तक देखती रहती हूँ मैं
खिड़की के उन शीशों पर,
जिन पर रहती नमी जमी है

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